समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Tuesday, July 27, 2010
न सीखी चाटुकारी.......
सबकुछ सिखा हमने ,न सीखी चाटुकारी
सच है दुनियावालो की हम है अनाड़ी॥
जो हो तुमको बढ़ना, सीखो होशियारी
आगे-पीछे डोलो ,हां में हाँ तू बोलो
मीठी छुरी मारो,करो जी हुजूरी ॥
नये गुरुकुल की यही है पढाई
तौर -तरक्की के वास्ते जाना इसी रास्ते
चमचागिरी के मन्त्र करो दिल से मक्कारी
तभी बढोगे आगे ,करोगे पत्रकारी ॥
-----पंकज भूषण पाठक 'प्रियम'
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