सावन की इस घडी में है तुम्हारा अभिनन्दन प्रिये
खिलती कलिओ की लड़ी से है तुम्हारा अभिनन्दन प्रिये
मस्त बहारो में सुलगते बदन के शोलो में
पुरबा की तीखी कटारोमें है तुम्हारा नमन प्रिये ।
बादल बरसती वर्षा बूंदों में
आंखे तरसती बोझिल नींदों में
घनघोर घटा वरिश की रातो में
बस तुम्हारा है सपन प्रिये ।
आ सजा दू तेरे हाथो में हरी चूडिया
माथे पे लगा दू सूरज सा विन्दिया
नर्म घासों में हरियाली में फूलो की झुकी डाली में
आ भर के बांहों में करू तुम्हारा आलिंगन प्रिये ।
आसमा भीं कर रहा देखो धरा से मिलन
नही होता सब्र अब तो ,उठ रहा दिल में अगन
धरा -गगन की सगाई में
मौसम की मस्त अंगड़ाई में
बना लो आँखों का काजल ,दिल का दर्पण प्रिये
प्रियम का है तुम्हे अभिनन्दन प्रिये ।
-पंकज भूषण पाठक 'प्रियम '
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