Monday, January 13, 2020

778. क्या लिखूँ

क्या लिखू मैं.......?

एक अरसा हो गया
जब कुछ लिखा था
जिंदगी की आपाधापी में
खो गया कुछ ऐसा
न अपना होश रहा
न खबर रही दुनिया की
ब्रेकिंग न्यूज़ की जहाँ में
यूँ उलझ गया..पूछो मत।
जो सच लिखता हूँ तो
लोग बुरा मान जाते हैं।
और
चासनी में लपेट
ज़हर परोसना
मुझे आता ही नहीं।
मन व्यथित है इतना
हर तरफ दंगाईयो की भीड़
कलम छोड़कर
पत्थर चला रहे हैं लोग
अखाड़ों में तब्दील हैं
शिक्षा के मंदिर
नफऱत की आग
हर तरफ है फैली
जल रहा जिसमें खुद
दावानल।

©पंकज प्रियम

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