Saturday, January 4, 2020

775.मन बंजारा

मन बंजारा

मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।
चार दिनों की ज़िन्दगी, बस इतना गुजारा है।

ये मन भी कहाँ इक पल, चैन से सोता है,
ख़्वाब सजाये आँखों में, चैन ये खोता है।
चाहत के जुनूँ में मन, बस फिरता मारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तन भी कहाँ हरदम, ये साथ निभाता है,
बचपन से बुढापे तक, ये हाथ बढ़ाता है।
गैरों से गिला कैसी, अपनों ने जारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तिनका-तिनका ये जीवन जोड़ता जाता है.
इक पल के बुलावे में सब छोड़ता जाता है।
साँसों की उधारी में धड़कन का सहारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

घनघोर निशा चाहे काली पर होता सबेरा है,
सुबह सुनहरी हो लाली फिर होता अँधेरा है।
वक्त से जंग लड़कर, खुद ही सब हारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।
©पंकज प्रियम
04.01.2020
"मन बंजारा", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :

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