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Wednesday, March 25, 2020

798. कोरोना कर्फ़्यू

कोरोना- 5
जनता कर्फ़्यू और लोगों की नजरिया
(व्यंग्य)-
(नोट:- कृपया कोई दिल पे न लें किसी को ठेस पहुंचाने की मंशा नहीं वर्तमान परिस्थितियों में जैसा देखा और सुना वही लिखा। बिल्कुल स्वच्छ व्यंग्य)

आज बहुत सारे लोग भी कह रहे हैं कि बहुत पहले कर्फ़्यू हो जाना चाहिए था लेकिन यही लोग 22 मार्च के जनता कर्फ़्यू का विरोध और मजाक कर रहे थे की इससे क्या फायदा होगा?  विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने जनता कर्फ़्यू का मज़ाक बना विरोध जता दिया था। एक चपन्दूक नेता ने यहां तक बढ़कर कहा था कि जो कोरोना पीड़ित है उसे लाओ मैं गले लगाउंगा। आज कहीं दुबका पड़ा है घर में। यार हद है कुछ लोगों की चपन्दूकता। आज वही लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को बहुत पहले ही यह कदम उठा लेने की जरूरत थी। मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी। प्रधानमंत्री ने देश के चिकित्सकों, पुलिसकर्मियों, पत्रकारों और उनसभी को धन्यवाद देने का आह्वान किया जो विषम परिस्थितियों में देश की सेवा में जुटे हैं तो पूरे देश ने ताली,तगली, घन्टी, डिब्बा, ढक्कन, शँख जो मिला उसी को बजाकर अपना धन्यवाद जताया। यद्यपि इसमें भी कुछ लोगों ने अति उत्साह दिखाकर पटाखे फोड़कर रैली निकाल दी जो बिल्कुल ही प्रधानमंत्री के अपील के विपरीत थी। लेकिन तथाकथित बुर्दहिमान,वचम्पादक और सो कॉल्ड सेक्यूलरों को यह बात नहीं पची और उन लोगों इसका भी मज़ाक बना दिया। यहाँ तक कि स्वनामधन्य पत्रकार और कई साहित्यकारों ने भी कह दिया कि भारत मूर्खो और मदारियों का देश है। मतलब आप अपने अहम में इतने चूर हो गए कि पीएम के सन्देश को भी सही ढंग से नहीं सुना और पूरे देश को मूर्ख और बंदर कह दिया। सुरक्षा के मद्देनजर सभी मंदिरों में भक्तों की पूजा पर रोक लग गयी लेकिन मस्जिद और सड़को पर सामूहिक नमाज जारी रहा। पूरे देश मे जनता कर्फ़्यू लग गया उसके बाद भी शाहीनबाग में लोग जमे रहे। क्या कहूँ शाहीनबाग की महिलाओं ने तो कोरोना को कुरान से जोड़कर कहना शुरू कर दिया था कि जो मुसलमानों को तंग करेगा उसी की जान लेगा कोरोना, उन्हें कुछ नहीं होगा। अरे हाँ पिछले सौ दिनों से धरने पर बैठे लोगों को भोजन पानी अल्लाह भेज रहा था लेकिन अब जबकि प्रशासन ने हटा दिया तो कह रहे भीख मांगने की नौबत आ गयी ।मतलब खुदा भी सिर्फ धरना के वक्त भोजन की आपूर्ति करता है क्या? मने की हद है यार! । एक मौलवी साहब ने तो सीधे कोरोना से बातचीत करने का दावा ठोक दिया और कहा कि मुसलमानों को बचाने के लिए कोरोना आया है। चीन,इटली और भारत समेत सभी उन देशों को खत्म करेगा जो उनलोगों को परेशान करता है। सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि लोग घरों में रहें लेकिन लोग मानते नहीं और मजबूरन प्रशासन को लाठी के जोर पर उन्हें घर वापस भेजना पड़ रहा है। मनुष्य खुद को श्रेष्ठ समझता है और इसलिए कुछ भी खा लेता है। जानवर भी अपनी प्रकृति के हिसाब से भोजन लेता है उसे आप दूसरी चीज खाने को नहीं दे सकते लेकिन मानव तो दानव से भी बदतर हो गया है। सांप, बिच्छु, केकड़ा, घोंघा, सुअर, चमगादड़ कुछ भी खा लेता है जिसका नतीजा कोरोना और हन्ता जैसे जानलेवा वायरस फैलता है एक चीन की गलत भोजन के कारण पूरी दुनिया संकट में है। उसका तो वैश्विक बहिष्कार हो जाना चाहिए।
पंकज भूषण पाठक प्रियम

Monday, March 23, 2020

796. कैद में मानव

कैद में मानव: डरना जरूरी है।
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घरों में कैद है मानव, .......गगन उड़ते सभी पक्षी,
दिखे जो खौफ़ ख़्वाबों में, हकीकत में नहीं अच्छी।
यहाँ हम कर्म हैं करते,... सजा कुदरत सुनाती है-
किया जो कर्म है तूने, सज़ा अब मिल रही सच्ची।।
अगर जीना तुम्हें जो है, ..अभी डरना जरूरी है,
प्रशासन जो कहे पालन, अभी करना जरूरी है।
नहीं बाहर अभी जाना,  घरों में कैद ही रहना-
अभी जो मौत बन आयी, उसे हरना जरूरी है।।
यह तस्वीर आज की हक़ीक़त है। सर्वशक्तिमान सम्पूर्ण मानव प्रजाति कमरों में बंद है और पंछी आज भी बेफिक्र हो उन्मुक्त गगन में स्वच्छन्द हो उड़ रहे हैं। हर अब भी हम नहीं चेते तो स्थिति और भयावह होगी। यह प्रलय का ही संकेत है। प्रलय का अर्थ ये नहीं कि धरती पलट जाएगी, जलप्लावित हो जाएगी या फिर जलकर भष्म हो जाएगी। कोरोना रूपी वायरस के रूप में भी तिलतिल कर मारने को प्रलय ही कहेंगे। समय-समय पर बाढ़, भूकम्प, तूफान और ऐसी बीमारियों से प्रकृति हमें आगाह करती रही है लेकिन हमें क्या? सर्वशक्तिमान बनने की होड़ में दैवीय संकेतों को पहचानने की फुर्सत कहाँ है? एटॉमिक, न्यूक्लियर बम, रासायनिक प्रयोग और अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने के लिए प्रकृति के नियमो को तोड़ते जा रहे हैं। मनुष्य ने ईश्वर से मिली असीम शक्तियों का दुरुपयोग कर प्रकृति को काबू में करने की हर सम्भव कोशिश की। बेजुबान प्राणियों और उन्मुक्त गगन में उड़ते पक्षियों को पिंजरे में कैद करना चाहा। जीभ के स्वाद के लिए बेजुबानों का निर्ममता से कत्ल किया। तरह तरह के डिस बनाकर कच्चा-पक्का अपनी उदरपूर्ति में लगा रहा। मनुष्य का शरीर कभी माँसाहार के लिए बना ही नहीं है न तो उसके दांत वैसे बने हैं और न अमाशय में मांस को पचाने की क्षमता है लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के सारे नियमों को ताक पर रख दिया। जितनी भी बीमारियां है उसकी जड़ गलत भोजन है। आज कोरोना वायरस की शुरुआत चीनियों के चमगादड़ के सुप पीने से हुई है। पक्षियों को पिजरे में बंद कर अपने मनोरंजन का साधन बना डाला। कुत्ते-बिल्ली यहां तक की शेरों को जंजीर में बांध दिया। पेड़ों का सफाया कर कंक्रीट के जंगल उगाने लगा। तालाब-कुआं सब भर कर ऊंची ऊंची इमारतें बनाने लगें। अपने प्रदूषण से पूरे वायुमंडल को दूषित कर दिया। अहम की अंधी दौड़ में सबकुछ पीछे छोड़ देने का नतीजा है ये प्रलय। प्राचीन वेद पुराणों में यूँही नहीं लिखा गया है कि जब -जब धरती पर पाप बढ़ेगा, प्रकृति खुद प्रलय के रूप में लोगों को सजा देगी। अति आधुनिकता की नकल में हम अपनी पुरातन संस्कृति और संस्कारों को भूलते गये। यज्ञ, तप, योग, साधना, पूजा, आराधना, संयम सबकुछ छोड़ दिया। पश्चिमी देशों की नकल में हम भी हैंडशेक, हग और किसिंग कल्चर में खुद को समाहित करते रहे। शराब, शबाब और कबाब में मानव सभ्यता को जमींदोज करते चले गए। एक दूसरे पर अपनी सत्ता और प्रभुता स्थापित करने की जंग में कब मानव से दानव हो गए इसका आभास तक नहीं हुआ। कुदरत हमें बारम्बार सचेत करती रही, संकेत देती रही चाहे वह ग्लोबल वार्मिंग हो, असमय बरोश, तूफ़ान या फिर प्रलयकारी बाढ़, लेकिन परमाणु सम्पन्न और मंगल-चाँद को भेदने का अहम पालने में इतने अँधे हो चले कि प्रकृति के संकेतों को समझ ही नहीं पाये। रावण सर्वशक्तिमान था, प्रकांड विद्वान था और त्रिलोकस्वामी भी था, बस उसके अहंकार ने उसे परास्त कर दिया। आज भी हम अंहकारी बने हुए हैं सरकार और  प्रशासन ने सभी की सुरक्षा के लिए जनता कर्फ्यू लगाया है लेकिन हम नहीं मान रहे हैं। बाजार में घूम रहे हैं। कुछ सियासत की रोटी सेंक रहे हैं तो कुछ विरोध में अंधे हो चुके हैं। इस वैश्विक आपदा में जब इटली, इरान और चीन जैसे देशों ने हार मान ली है तो अभी भी हम इसका मज़ाक बनाने में जुटे हैं। हालांकि डॉक्टर, नर्स, पुलिस, सफाईकर्मी, बिजली, पानी और विधि व्यवस्था में लोग युध्द स्तर पर कार्य कर रहे हैं। उनके सम्मान हेतु 22 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने 5 मिनट की ताली बजाकर धन्यवाद देने केआ आह्वान किया तो पूरे देश ने उनकी बात मानी लेकिन कई लोगों ने इसपर भी सवाल खड़े केर मज़ाक बनाया, लोगों को मूर्ख घोषित किया और खुलेआम बाहर घूमने निकल पड़े। कोरोना के प्रकोप से महाबली बनने चला चीन, अत्याधुनिक इटली और शक्तिशाली ईरान समेत पूरा विश्व त्राहिमाम है फिर भी हमारे देश में लोग इसकी गम्भीरता नहीं समझ रहे हैं। सरकार के जनता कर्फ्यू का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और खुलेआम खतरों को बांटने का काम कर रहे हैं। इसलिए बचना है तो डरना जरूरी है। ज्यादा बहादुरी दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। बिल्कुल डरकर घरों में रहें और कोरोना के चक्र को तोड़ने में मदद करें। खुद भी बचें और दूसरों को बचाएं।
© पंकज भूषण पाठक प्रियम

Sunday, March 22, 2020

794. शंखनाद

शंखनाद रोज करें, स्वस्थ रहें मौज करें।
पंकज प्रियम

हमारी सनातन संस्कृति में पूजापाठ, पर्व-त्यौहार , शुभकार्य, युद्ध के प्रारम्भ और अंत की घोषणा इत्यादि में शँख बजाने की परंपरा रही है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। प्राचीनकाल में ,वेद-पुराण में जो भी नियम बनाये गए सभी के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हुए हैं। कुछ लोग भले इसे ढकोसला कहकर मज़ाक उड़ाएं लेकिन आज कोरोना के खौफ़ ने फिर उसी पुरातन संस्कृति की ओर मुड़ने पर विवश कर दिया है। आज विज्ञान ने भी मान लिया है कि शंखनाद से न केवल हमारी आंतरिक शक्ति बढ़ती है बल्कि कई रोगों का नाश भी होता है। शँख की ध्वनि जहाँ तक जाती उसके कंपन से वातावरण में मौजूद कीटाणु और विषाणुओं का नाश हो जाता है। शँख बजाने में बहुत जोर लगाना पड़ता है पूरे शरीर का रक्तसंचार बढ़ जाता है, मांसपेशियों पर जबरदस्त खिंचाव होता है और फेफड़ों को ताकत मिलती है। हर रोज सुबह-शाम शंख बजाने से हमारी श्वसन प्रणाली मजबूत होती है। शंखनाद से हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने भी यह बात सिद्ध किया था कि शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। आयुर्वेद चिकित्सक भी यह बात मानते हैं कि प्रतिदिन शंख फूँकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो शंख बजाने का सबसे असरकारी प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति के फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है। शंख बजाने में फेफड़ों की पूरी शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है, जिसके कारण व्यक्ति कभी भी श्वास की बीमारी जैसे दमा या अस्थमा आदि का शिकार नहीं बनता।  शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब पूजा आदि कार्यों में शंख में पानी भरकर रखा जाता है, तो शंख के सभी गुण उस पानी में आ जाते हैं। पूजा के बाद जब यही पानी श्रद्धालुओं को पीने के लिए दिया जाता है या उन पर छींटा जाता है, तो कम-अधिक रूप में यह सभी गुण उनमें भी पहुंच जाते हैं। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के साथ-साथ शंख के पानी में कीटाणुनाशक गुण भी होते है। इसके सेवन से व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है।
     हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर और अरब सागर में शंख बहुतायत में मिलते हैं। शंख एक प्रकार के समुद्री जीव का रक्षा कवच होता है। तांत्रिक, ज्योतिष, आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक प्रभाव के कारण ये शंख इतने पवित्र और चमत्कारी हैं कि इनकी पूजा भगवान की प्रतिमा की तरह होती है। वेद-पुराणों में भी उल्लेख है कि जहाँ शंखनाद होता है वहाँ सभी प्रकार के अनिष्टों का नाश होता है। मंदिरों, शुभ कार्यों, विवाह, यज्ञादि में शंख ध्वनि शुभ संदेश देती है। भारतीय संस्कृति में शंख को मांगलिक चिह्न एवं उपलब्धि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न प्रकार के शंखों की उत्पति का ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के 18वें अध्याय में पूरा आख्यान है। वेदों में भी शंखों को बड़ा महत्व दिया गया है।अथर्ववेद में लिखा है- शंख ध्वनि से सभी राक्षसों का नाश होता है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूँकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथ में विभिन्न प्रकार के शंख आयुध के रूप में धारण कर रखे हैं। अथर्ववेद के 'शंखमणि सूक्त में शंख की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुलस्त्य संहिता, विश्वामित्र संहिता, लक्ष्मी संहिता, कश्यप संहिता, मार्कंडेय, गौरक्ष संहिता एवं कई प्राचीन ग्रंथों में शंख की दुर्लभ जानकारियाँ मिलती हैं। स्वर्ग के सुखों में आठ सिद्धियाँ एवं नव निधियों में शंख भी एक अमूल्य निधि है। शंख को दरिद्रतानाशक माना गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं धन्वंतरि के अनुसार भी शंख का महत्व कम नहीं है।
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Friday, March 20, 2020

793. भारतीयता अपनाएं कोरोना भगाएं

*भारतीयता अपनाएं, कोरोना भगाएं।*
-हमारी संस्कृति में ही रोगों से बचाव और उपचार है।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

कोरोना से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी 22 मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया तो बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कहने लगे कि मोदी का यह आइडिया पश्चिमी देशों की नकल है। शायद उन्हें पता नहीं कि ताली बजाने का आइडिया तो सदियों से वेद पुराण में है। पूजा के बाद आरती में लोग तालियां बजाते हैं उससे न केवल रक्त संचार होता है बल्कि कई बीमारियों से बचाव होता है। हमारी हथेली और तलवे में पूरे शरीर के नसों का पॉइन्ट होता है । ताली बजाने से उनमें दबाव पड़ता है जिससे पूरे शरीर का रक्त संचार सही होता है। ताली बजाने से एक ऊर्जा मिलती है। आज के सभी आइडिया हमारे प्राचीन ग्रंथो में पहले से ही है जिसे कुछ लोग ढकोसला बताते रहे आज वही अपना रहे, शाकाहार, नमस्कार, योग, व्यायाम, संयम सबकुछ पहले से है। बीमारियां तो आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की देन है। हवन की समिधा में धूप, गुग्गुल, मधु, घी, नवग्रह की लकड़ियां सहित कई तरह की सामग्री को जलाते हैं जिससे वातावरण के सारे कीटाणु और विषाणुओं का अंत होता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है। हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ हथेली में मौजद कीटाणुओं का नाश कर देती है और स्वतः सेनिटाइजर का काम करती है। आज कोरोना के भय से दिन में दस बार लोग सेनिटाइजर का उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह प्रसाद में तुलसी के पत्ते को डाला जाता है उसके पीछे का भी वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रसाद में अगर कोई जहरीला पदार्थ मिला होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा और शुद्ध होने पर प्रसाद कितना भी गर्म हो तुलसी का पत्ता हरा ही रहेगा। प्रसाद के साथ हम तुलसी को भी खाते हैं जो रोगों से बचाव करता है। आज डॉक्टर भी तुलसी के पत्ते को खाने की सलाह दे रहे हैं। इसी तरह शंख बजाने से न केवल हमारी श्वास प्रणाली सुदृढ होती है बल्कि पूरे वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त करती है। यह विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया हैं कि शंख की ध्वनि से आसपास के वातावरण से कीटाणुओं का नाश हो जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 चरणों में शरीर का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसलिए स्नान कर और हाथ-पैर धोकर जाने का विधान है ताकि आप सेनिटाइज होते रहें। नियकर्म पद्धति में शौच क्रिया के पश्चात और भोजन से पूर्व हस्त प्रक्षालन के जितने चरण बताये गये हैं आज हम वही हैंडवाश के 7 चरणों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। पहले अस्पताल या शौच से आने के बाद स्नान करके घर में प्रवेश की इजाज़त थी जिसके पीछे का तथ्य यही है कि आप संक्रमण से स्वच्छ होकर ही घर में घुसे ताकि अन्य लोग प्रभावित न हों। पहले लोग जूते-चप्पल घर के बाहर ही रखते थे ताकि कीटाणु/विषाणु  घर में प्रवेश न कर सके। हिन्दू धर्म मे शवों के दाह संस्कार का विधान है जिसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य है कि जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। आज कोरोना के मामले में भी यही प्रकिया अपनायी जा रही है। हमारी संस्कृति हाथ जोड़कर नमस्कार करने की रही है ,संक्रमण होने का खतरा नहीं होता। जबकि पश्चात्य संस्कृति में हग और किस(आलिंगन-चुंबन) प्रमुख है। आज कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया हमारी नमस्कार संस्कृति को अपना रही है। प्राचीन काल मे शाकाहार को महत्व दिया गया है उसमें बीमारियों का खतरा नहीं होता। कोरोना का संक्रमण माँस से ही हुआ है। आज इसके खौफ़ से मांसाहार छोड़ शाकाहारी बनने लगे हैं। मासिकधर्म के दैरान महिलाओं को बहुत आराम की जरूरत होती है और बहुत जल्द संक्रमित होने का खतरा रहता है इसलिए उन्हें मन्दिर या भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से रोका जाता था। आज कोरोना संक्रमित मरीजों को 14 दिनों के आइसोलेशन वार्ड में रखने की सलाह दी जा रही है जबकि यह प्रक्रिया हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। जब भी किसी को चेचक होता था तो उसे अलग कमरे में नीम की डालियों से घिरी चारपाई में सुलाया जाता था ताकि संक्रमण बढ़े नहीं और मरीज ठीक हो। हमारे यहां तो भगवान जगन्नाथ भी बीमार पड़ते हैं और उन्हें कुछ दिनों के बिल्कुल ही आइसोलेट कर आराम करने दिया जाता है। ये सारी प्रथाएं और भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है लेकिन लोग इसे ढकोसला और अंधविश्वास बता कर मज़ाक उड़ाते रहते हैं। आज कोरोना के खौफ़ में पूरी दुनियां भारतीय संस्कृति को अपनाने पर विवश है।सनातन धर्म में तो सदियों से बात बताई गई है कि शाकाहार अपनाओ, प्राणिमात्र से प्रेम रखो, वन-उपवन का संरक्षण करो, फलाहार करो, किसी प्राणी की हत्या न करो। प्रकृति से प्रेम करो। अगर वातारण शुद्ध है तो मुंह मे पट्टी बांधने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यज्ञ हवन समिधा में इतनी सामग्री जलती थी कि सारे कीटाणु/विषाणु मर जाते।शँख, घँटी और तालियों की ध्वनि से वातावरण कीटाणु मुक्त रहता था। तुलसी का प्रयोग हर प्रसाद में किया जाता है। आज वही हम खा रहे हैं। आरती में कपूर जो सेनिटाइजर का काम करता है। नित्यकर्म पद्धति में हस्त प्रक्षालन के जितने चरण वर्णित हैं आज उसे  हैंडवाश में सीखा रहे हैं। इसी तरह स्नान,ध्यान, योग ,तप, साधना, एकांतवास सबकुछ पहले से ही वर्णित है। जितने भी नियम बने उसके पीछे विज्ञान छुपा है।
इसीलिए भारतीय संस्कृति अपनाओ, कोरोना जैसे खतरों को दूर भगाओ।

© पंकज भूषण पाठक प्रियम

Friday, December 20, 2019

765. अफ़वाह और भीड़तंत्र

अफवाह,भीड़तंत्र और भेड़चाल
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©पंकज प्रियम
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में अफवाहों का बाजार गर्म गया और भेड़चाल में भीड़तंत्र है। इसका विरोध करनेवालों में किसी ने भी न तो इस कानून को पढ़ा है और न ही समझने की कोशिश की है। बस विरोध की भेड़चाल में सभी चल पड़े हैं जिन्हें नफऱत की सियासत करनेवाले हाँकने में लगे हैं। भीड़ में अनपढ़ और नासमझ लोगों की बात तो समझ में आती है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी और समाज को दर्पण दिखनेवाले फिल्मी कलाकारों की मूर्खता पर हंसी आती है। मुंबई के आज़ाद पार्क में फरहान अख़्तर, ओमप्रकाश मेहरा, जाबेद जाफ़री और स्वरा भास्कर जैसे फिल्मी हस्तियों ने इस कानून के खिलाफ खूब हल्ला बोला लेकिन जब इनसे CAA और NRC  के विषय में पूछा गया तो उनका जवाब सुनने लायक था। फरहान अख़्तर ने कहा कि -इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन इतने सारे लोग जुटे हैं तो लगता है कि इसमें जरूर कुछ गलत है। हद है मतलब कोई भीड़ इकट्ठी होगी तो आप भी उस भीड़तंत्र की कठपुतली बन जाएंगे? अपना बुद्धि विवेक है या नहीं?
इसी तरह ओमप्रकाश मेहरा ने भी कहा कि उन्होंने इस कानून को पढ़ा नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकते तो भैया भीड़ में क्या तमाशा दिखाने आये थे?

हमेशा की तरह स्वरा भास्कर का इसबार भी जवाब था कि इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन लगता है कि संविधान के खिलाफ है। हम गाँधी को मानते हैं। वाह! स्वरा वाह!! जो लोग आग लगा रहे हैं, पुलिस पर पत्थर चला रहे हैं। सरकारी सम्पत्ति को तोड़ रहे हैं, हिंसा फैला रहे हैं उनके साथ खड़ी होकर गाँधी की बात करती हो? जब इस कानून के विषय जानकारी नही है तो फिर किस चीज का हल्ला बोल।
जावेद का भी जवाब बेतुका ही था। ये हैं फिल्मी सितारे जिन्हें हम बड़े पर्दे पर देख अपना नजरिया बदलते हैं। जब इन्हें ही कानून की सही जानकारी नहीं और भीड़तंत्र की कठपुतली बनकर भेड़चाल में चल पड़े तो सोचिये आम मुसलमान को कितनी जानकारी होगी। वह भी कुछ सियासी तत्वों के बहकावे में आकर भेड़चाल में चल पड़ी है। ओबैसी और अमानुल्लाह जैसे स्वार्थी नेताओं की अपील पर सड़कों पर दंगा करने निकल पड़े हैं। हिंसा कर रही भीड़ में शामिल एक भी व्यक्ति को न तो इस कानून की सही जानकारी है और न ही इसे समझना चाहते हैं। कुछ लोगों के रिमोट पर चलकर सड़कों पर उतर आए हैं।
पत्थर चलाने वाले!  जरा उन नेताओं को आगे कर उन्हें पत्थर चलाने को कहो जिसने तुम्हे उकसाया है। ये सियासतदां सिर्फ आग लगाकर अपनी रोटी सेंकना जानते हैं। दंगों में कभी किसी नेता को मरते देखा है? कभी नहीं क्योंकि उनका काम है आग लगाना और फिर दूर खड़े रहकर तमाशा देखना। वे चैनलों में बैठकर बड़ी बड़ी बातें करते है और भीड़ में मरते है आम लोग।
कृपया नेताओ की कठपुतली मत बनिये, अफ़वाहों से गुमराह होकर भेड़चाल मत चलिए। भीड़तंत्र का हिस्सा बनने से पहले अपने बुध्दि और विवेक का इस्तेमाल कीजिये। किसी भी चीज का विरोध या समर्थन बगैर उसे जाने समझे मत कीजिये।

Sunday, December 15, 2019

753. अशांति

विरोध के नाम पर शांतिप्रिय लोगों अशांति
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©पंकज प्रियम

क्यूँ चुप है ममता? क्या यह मोब्लिंचिंग नहीं?
क्या मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं?

नागरिकता संसोधन बिल के विरोध को लेकर इन दिनों असम और पश्चिम बंगाल में जो कुछ भी हो रहा वह किसी भी सभ्य समाज और शांतिपूर्ण देश के अच्छा नहीं है। वक्त और जरूरत के हिसाब से सरकारें कानूनों के बदलाव करती रहती है और संविधान में अबतक काफी संसोधन हो चुका है। सरकार के फैसलों पर असहमति और विरोध प्रदर्शन भी स्वाभाविक है लेकिन जिस तरह की हिंसा और आगजनी इन दिनों बंगाल में दिख रही है वह चिन्ताजनक है। ख़ासकर मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका हिंसा पर उतारू है वह भारतीय नहीं हो सकता। ये सारे बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या मुसलमान हैं। इनके साथ समाज को तोड़ने वाले कुछ राजनीतिक दल खुलेतौर पर कहा जाय तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का खुला समर्थन है। जिसके प्रान्त में इस तरह खुलेआम गुंडागर्दी हो रही हो, सरकारी मशीनरी को जलाया जा रहा हो, तोड़फोड़ कर बर्बाद किया जा रहा हो,  हिन्दू परिवारों को चुन चुनकर मारा जा रहा हो उस राज्य की मुख्यमंत्री तमाशबीन बनी हुई है। जो जय श्री राम के नारों पर भड़क जाती है, बीच सड़क पर रामभक्तों को लाठी लेकर दौड़ाने लगती है आज इन गुंडों के जघन्य अपराध पर भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है? यह सीधे सीधे उनका समर्थन नहीं तो क्या है। पूरा बंगाल जल रहा है लोग भयभीत है, रेल, सड़क,बाजार सबकुछ मुसलमानों के निशाने पर है कोई कन्ट्रोल नहीं है। सरकारी सम्पत्ति और निर्दोषों को निशाना बनाने का अधिकार किसने दिया? सबकुछ कैमरे के सामने लाइव घटना हो रही है लेकिन पुलिस एक भी अपराधी को पकड़ नहीं रही ह। आखिर क्यूँ?
जय श्री राम कहने पर जेल भेज देने वाली ममता की पुलिस क्या आज नामर्द हो गयी है जो इन गुंडों को पकड़ नहीं पा रही है? तबरेज़ अंसारी की मोब्लिंचिंग और हैदराबाद एनकाउंटर पर सवाल खड़ा करनेवाली ममता को यहाँ निर्दोषों की मोब्लिंचिंग नहीं दिख रही है? आज सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग और तथाकथित बुद्धिजीवी ,अवार्ड वापसी गिरोह को आम जनता के साथ गुंडो की मोब्लिंचिंग नहीं दिख रही है। क्या इस मामले में स्वतः संज्ञान नहीं ले सकती। बंगाल और असम के हिंदुओं का खून, खून नहीं है क्या? आम जनता का मानवाधिकार नहीं है क्या?

नागरिकता बिल का विरोध करना है तो शांतिपूर्ण तरीके से करो न कौन रोका है? कोर्ट है जाओ ,लड़ो। अगर लगता है कि तुम्हारे साफ नाइंसाफी हुई है तो हक के लिए  आमरण अनशन करो लेकिन आम निर्दोष लोगों का खून मत बहाव यह आंदोलन नहीं बल्कि हिंसा है।
नागरिकता बिल में बिल्कुल ही स्पस्ट है कि दूसरे देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी और भारत के किसी भी मुसलमान का इसमें कोई नुकसान नहीं है। फिर भी ममता बनर्जी, ओबैसी जैसे लोग मुसलमानों को भड़का कर देश को अशांत करने में लगे है।  जो गुंडागर्दी कर रहे हैं उन्हें इस कानून का कोई मतलब भी नहीं पता होगा लेकिन राजनयिक संरक्षण में लाठी तलवार लेकर गुंडागर्दी पे उतर आये हैं।
अगर ऐसे लोग शांतिप्रिय समाज है तो नहीं भारत को ऐसे लोग इन्हें यहाँ से खदेड़ कर बाहर करने के लिए और कड़े एनआरसी कानून की जरूरत हो तो सरकार लाये लेकिन ऐसे गुंडे और उत्पातियों के लिए इस देश मे कोई जगह नहीं होनी चाहिये। ममता बनर्जी इन्ही गुंडों के मदद से बंगाल में राज कर रही है । इन अवैध घुसपैठियों की बदौलत ही उसे वोट मिलता रहा है। अब इन्हें हटाने की बात पर वह बौखला गयी है और गुंडागर्दी की छूट दे रखी है। राज्य अशान्त हो और मुख्यमंत्री चुपचाप तमाशा देख रही है इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है।
जो लोग भी इस कानून के विरोध में गुंडागर्दी पर उतारू हैं उनसे सवाल है कि भाई जब किसी भारतीय मुसलमान को कोई नुकसान ही नहीं है उनकी नागरिकता पर कोई प्रश्न ही नहीं है तो फिर बवाल किस बात का? दो दिन देशों के सिख, ईसाई, हिन्दू ,बौद्ध और जैन के शरणार्थियों को जगह मिल जाती है तो इससे तुम्हे क्या तकलीफ है? जब भारत ने इतने सारे विदेशी आक्रमणकारियों को इस धरती पर जगह दे दी जिसके के कारण आज सोने की चिड़िया अपने ही पिंजरे में कैद रहने को विवश है तो भला जिनका मूल अधिकार है इस जमी पर उन्हें साथ रखने पर तुम्हे क्यूँ कष्ट हो रहा है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश जैसे कई देश सिर्फ इस्लाम धर्म के हैं वहाँ दूसरे धर्म के लोगों का जीवन नर्क है लेकिन हिंदुस्तान में किसी भी धर्म के लोगों के साथ कभी अन्याय नहीं होता। अपना हिस्सा अपनी जमीन सबकुछ तो हँसते-हँसते बांटा फिर काहे की नफऱत का बीज बो रहे हो। कहने को तो यहाँ कई लोग भारत में डर का माहौल दिखाते हैं लेकिन जिसे पसंद करते है वहाँ जाकर रहने की हिम्मत नहीं करते। अगर भारत में इतना ही खौफ़ है ,डर का माहौल है तो फिर किस लिए यहाँ रहना चाहते हो, चले जाओ जहाँ जन्नत नसीब होगी।
क्यूँ अमन शांति को भंग करने में लगे हो। केंद्र सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द कार्रवाई करते हुए बंगाल और असम में राष्ट्रपति शासन लगाकर स्थिति को अपने  नियंत्रण में ले और सारे गुंडो को कठोर सजा दे ताकि आम भारतीय चैन की साँस ले सके।