Monday, March 23, 2020

796. कैद में मानव

कैद में मानव: डरना जरूरी है।
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घरों में कैद है मानव, .......गगन उड़ते सभी पक्षी,
दिखे जो खौफ़ ख़्वाबों में, हकीकत में नहीं अच्छी।
यहाँ हम कर्म हैं करते,... सजा कुदरत सुनाती है-
किया जो कर्म है तूने, सज़ा अब मिल रही सच्ची।।
अगर जीना तुम्हें जो है, ..अभी डरना जरूरी है,
प्रशासन जो कहे पालन, अभी करना जरूरी है।
नहीं बाहर अभी जाना,  घरों में कैद ही रहना-
अभी जो मौत बन आयी, उसे हरना जरूरी है।।
यह तस्वीर आज की हक़ीक़त है। सर्वशक्तिमान सम्पूर्ण मानव प्रजाति कमरों में बंद है और पंछी आज भी बेफिक्र हो उन्मुक्त गगन में स्वच्छन्द हो उड़ रहे हैं। हर अब भी हम नहीं चेते तो स्थिति और भयावह होगी। यह प्रलय का ही संकेत है। प्रलय का अर्थ ये नहीं कि धरती पलट जाएगी, जलप्लावित हो जाएगी या फिर जलकर भष्म हो जाएगी। कोरोना रूपी वायरस के रूप में भी तिलतिल कर मारने को प्रलय ही कहेंगे। समय-समय पर बाढ़, भूकम्प, तूफान और ऐसी बीमारियों से प्रकृति हमें आगाह करती रही है लेकिन हमें क्या? सर्वशक्तिमान बनने की होड़ में दैवीय संकेतों को पहचानने की फुर्सत कहाँ है? एटॉमिक, न्यूक्लियर बम, रासायनिक प्रयोग और अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने के लिए प्रकृति के नियमो को तोड़ते जा रहे हैं। मनुष्य ने ईश्वर से मिली असीम शक्तियों का दुरुपयोग कर प्रकृति को काबू में करने की हर सम्भव कोशिश की। बेजुबान प्राणियों और उन्मुक्त गगन में उड़ते पक्षियों को पिंजरे में कैद करना चाहा। जीभ के स्वाद के लिए बेजुबानों का निर्ममता से कत्ल किया। तरह तरह के डिस बनाकर कच्चा-पक्का अपनी उदरपूर्ति में लगा रहा। मनुष्य का शरीर कभी माँसाहार के लिए बना ही नहीं है न तो उसके दांत वैसे बने हैं और न अमाशय में मांस को पचाने की क्षमता है लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के सारे नियमों को ताक पर रख दिया। जितनी भी बीमारियां है उसकी जड़ गलत भोजन है। आज कोरोना वायरस की शुरुआत चीनियों के चमगादड़ के सुप पीने से हुई है। पक्षियों को पिजरे में बंद कर अपने मनोरंजन का साधन बना डाला। कुत्ते-बिल्ली यहां तक की शेरों को जंजीर में बांध दिया। पेड़ों का सफाया कर कंक्रीट के जंगल उगाने लगा। तालाब-कुआं सब भर कर ऊंची ऊंची इमारतें बनाने लगें। अपने प्रदूषण से पूरे वायुमंडल को दूषित कर दिया। अहम की अंधी दौड़ में सबकुछ पीछे छोड़ देने का नतीजा है ये प्रलय। प्राचीन वेद पुराणों में यूँही नहीं लिखा गया है कि जब -जब धरती पर पाप बढ़ेगा, प्रकृति खुद प्रलय के रूप में लोगों को सजा देगी। अति आधुनिकता की नकल में हम अपनी पुरातन संस्कृति और संस्कारों को भूलते गये। यज्ञ, तप, योग, साधना, पूजा, आराधना, संयम सबकुछ छोड़ दिया। पश्चिमी देशों की नकल में हम भी हैंडशेक, हग और किसिंग कल्चर में खुद को समाहित करते रहे। शराब, शबाब और कबाब में मानव सभ्यता को जमींदोज करते चले गए। एक दूसरे पर अपनी सत्ता और प्रभुता स्थापित करने की जंग में कब मानव से दानव हो गए इसका आभास तक नहीं हुआ। कुदरत हमें बारम्बार सचेत करती रही, संकेत देती रही चाहे वह ग्लोबल वार्मिंग हो, असमय बरोश, तूफ़ान या फिर प्रलयकारी बाढ़, लेकिन परमाणु सम्पन्न और मंगल-चाँद को भेदने का अहम पालने में इतने अँधे हो चले कि प्रकृति के संकेतों को समझ ही नहीं पाये। रावण सर्वशक्तिमान था, प्रकांड विद्वान था और त्रिलोकस्वामी भी था, बस उसके अहंकार ने उसे परास्त कर दिया। आज भी हम अंहकारी बने हुए हैं सरकार और  प्रशासन ने सभी की सुरक्षा के लिए जनता कर्फ्यू लगाया है लेकिन हम नहीं मान रहे हैं। बाजार में घूम रहे हैं। कुछ सियासत की रोटी सेंक रहे हैं तो कुछ विरोध में अंधे हो चुके हैं। इस वैश्विक आपदा में जब इटली, इरान और चीन जैसे देशों ने हार मान ली है तो अभी भी हम इसका मज़ाक बनाने में जुटे हैं। हालांकि डॉक्टर, नर्स, पुलिस, सफाईकर्मी, बिजली, पानी और विधि व्यवस्था में लोग युध्द स्तर पर कार्य कर रहे हैं। उनके सम्मान हेतु 22 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने 5 मिनट की ताली बजाकर धन्यवाद देने केआ आह्वान किया तो पूरे देश ने उनकी बात मानी लेकिन कई लोगों ने इसपर भी सवाल खड़े केर मज़ाक बनाया, लोगों को मूर्ख घोषित किया और खुलेआम बाहर घूमने निकल पड़े। कोरोना के प्रकोप से महाबली बनने चला चीन, अत्याधुनिक इटली और शक्तिशाली ईरान समेत पूरा विश्व त्राहिमाम है फिर भी हमारे देश में लोग इसकी गम्भीरता नहीं समझ रहे हैं। सरकार के जनता कर्फ्यू का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और खुलेआम खतरों को बांटने का काम कर रहे हैं। इसलिए बचना है तो डरना जरूरी है। ज्यादा बहादुरी दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। बिल्कुल डरकर घरों में रहें और कोरोना के चक्र को तोड़ने में मदद करें। खुद भी बचें और दूसरों को बचाएं।
© पंकज भूषण पाठक प्रियम

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