Sunday, March 22, 2020

794. शंखनाद

शंखनाद रोज करें, स्वस्थ रहें मौज करें।
पंकज प्रियम

हमारी सनातन संस्कृति में पूजापाठ, पर्व-त्यौहार , शुभकार्य, युद्ध के प्रारम्भ और अंत की घोषणा इत्यादि में शँख बजाने की परंपरा रही है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। प्राचीनकाल में ,वेद-पुराण में जो भी नियम बनाये गए सभी के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हुए हैं। कुछ लोग भले इसे ढकोसला कहकर मज़ाक उड़ाएं लेकिन आज कोरोना के खौफ़ ने फिर उसी पुरातन संस्कृति की ओर मुड़ने पर विवश कर दिया है। आज विज्ञान ने भी मान लिया है कि शंखनाद से न केवल हमारी आंतरिक शक्ति बढ़ती है बल्कि कई रोगों का नाश भी होता है। शँख की ध्वनि जहाँ तक जाती उसके कंपन से वातावरण में मौजूद कीटाणु और विषाणुओं का नाश हो जाता है। शँख बजाने में बहुत जोर लगाना पड़ता है पूरे शरीर का रक्तसंचार बढ़ जाता है, मांसपेशियों पर जबरदस्त खिंचाव होता है और फेफड़ों को ताकत मिलती है। हर रोज सुबह-शाम शंख बजाने से हमारी श्वसन प्रणाली मजबूत होती है। शंखनाद से हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने भी यह बात सिद्ध किया था कि शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। आयुर्वेद चिकित्सक भी यह बात मानते हैं कि प्रतिदिन शंख फूँकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो शंख बजाने का सबसे असरकारी प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति के फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है। शंख बजाने में फेफड़ों की पूरी शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है, जिसके कारण व्यक्ति कभी भी श्वास की बीमारी जैसे दमा या अस्थमा आदि का शिकार नहीं बनता।  शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब पूजा आदि कार्यों में शंख में पानी भरकर रखा जाता है, तो शंख के सभी गुण उस पानी में आ जाते हैं। पूजा के बाद जब यही पानी श्रद्धालुओं को पीने के लिए दिया जाता है या उन पर छींटा जाता है, तो कम-अधिक रूप में यह सभी गुण उनमें भी पहुंच जाते हैं। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के साथ-साथ शंख के पानी में कीटाणुनाशक गुण भी होते है। इसके सेवन से व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है।
     हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर और अरब सागर में शंख बहुतायत में मिलते हैं। शंख एक प्रकार के समुद्री जीव का रक्षा कवच होता है। तांत्रिक, ज्योतिष, आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक प्रभाव के कारण ये शंख इतने पवित्र और चमत्कारी हैं कि इनकी पूजा भगवान की प्रतिमा की तरह होती है। वेद-पुराणों में भी उल्लेख है कि जहाँ शंखनाद होता है वहाँ सभी प्रकार के अनिष्टों का नाश होता है। मंदिरों, शुभ कार्यों, विवाह, यज्ञादि में शंख ध्वनि शुभ संदेश देती है। भारतीय संस्कृति में शंख को मांगलिक चिह्न एवं उपलब्धि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न प्रकार के शंखों की उत्पति का ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के 18वें अध्याय में पूरा आख्यान है। वेदों में भी शंखों को बड़ा महत्व दिया गया है।अथर्ववेद में लिखा है- शंख ध्वनि से सभी राक्षसों का नाश होता है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूँकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथ में विभिन्न प्रकार के शंख आयुध के रूप में धारण कर रखे हैं। अथर्ववेद के 'शंखमणि सूक्त में शंख की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुलस्त्य संहिता, विश्वामित्र संहिता, लक्ष्मी संहिता, कश्यप संहिता, मार्कंडेय, गौरक्ष संहिता एवं कई प्राचीन ग्रंथों में शंख की दुर्लभ जानकारियाँ मिलती हैं। स्वर्ग के सुखों में आठ सिद्धियाँ एवं नव निधियों में शंख भी एक अमूल्य निधि है। शंख को दरिद्रतानाशक माना गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं धन्वंतरि के अनुसार भी शंख का महत्व कम नहीं है।
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