Friday, December 20, 2019

765. अफ़वाह और भीड़तंत्र

अफवाह,भीड़तंत्र और भेड़चाल
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©पंकज प्रियम
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में अफवाहों का बाजार गर्म गया और भेड़चाल में भीड़तंत्र है। इसका विरोध करनेवालों में किसी ने भी न तो इस कानून को पढ़ा है और न ही समझने की कोशिश की है। बस विरोध की भेड़चाल में सभी चल पड़े हैं जिन्हें नफऱत की सियासत करनेवाले हाँकने में लगे हैं। भीड़ में अनपढ़ और नासमझ लोगों की बात तो समझ में आती है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी और समाज को दर्पण दिखनेवाले फिल्मी कलाकारों की मूर्खता पर हंसी आती है। मुंबई के आज़ाद पार्क में फरहान अख़्तर, ओमप्रकाश मेहरा, जाबेद जाफ़री और स्वरा भास्कर जैसे फिल्मी हस्तियों ने इस कानून के खिलाफ खूब हल्ला बोला लेकिन जब इनसे CAA और NRC  के विषय में पूछा गया तो उनका जवाब सुनने लायक था। फरहान अख़्तर ने कहा कि -इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन इतने सारे लोग जुटे हैं तो लगता है कि इसमें जरूर कुछ गलत है। हद है मतलब कोई भीड़ इकट्ठी होगी तो आप भी उस भीड़तंत्र की कठपुतली बन जाएंगे? अपना बुद्धि विवेक है या नहीं?
इसी तरह ओमप्रकाश मेहरा ने भी कहा कि उन्होंने इस कानून को पढ़ा नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकते तो भैया भीड़ में क्या तमाशा दिखाने आये थे?

हमेशा की तरह स्वरा भास्कर का इसबार भी जवाब था कि इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन लगता है कि संविधान के खिलाफ है। हम गाँधी को मानते हैं। वाह! स्वरा वाह!! जो लोग आग लगा रहे हैं, पुलिस पर पत्थर चला रहे हैं। सरकारी सम्पत्ति को तोड़ रहे हैं, हिंसा फैला रहे हैं उनके साथ खड़ी होकर गाँधी की बात करती हो? जब इस कानून के विषय जानकारी नही है तो फिर किस चीज का हल्ला बोल।
जावेद का भी जवाब बेतुका ही था। ये हैं फिल्मी सितारे जिन्हें हम बड़े पर्दे पर देख अपना नजरिया बदलते हैं। जब इन्हें ही कानून की सही जानकारी नहीं और भीड़तंत्र की कठपुतली बनकर भेड़चाल में चल पड़े तो सोचिये आम मुसलमान को कितनी जानकारी होगी। वह भी कुछ सियासी तत्वों के बहकावे में आकर भेड़चाल में चल पड़ी है। ओबैसी और अमानुल्लाह जैसे स्वार्थी नेताओं की अपील पर सड़कों पर दंगा करने निकल पड़े हैं। हिंसा कर रही भीड़ में शामिल एक भी व्यक्ति को न तो इस कानून की सही जानकारी है और न ही इसे समझना चाहते हैं। कुछ लोगों के रिमोट पर चलकर सड़कों पर उतर आए हैं।
पत्थर चलाने वाले!  जरा उन नेताओं को आगे कर उन्हें पत्थर चलाने को कहो जिसने तुम्हे उकसाया है। ये सियासतदां सिर्फ आग लगाकर अपनी रोटी सेंकना जानते हैं। दंगों में कभी किसी नेता को मरते देखा है? कभी नहीं क्योंकि उनका काम है आग लगाना और फिर दूर खड़े रहकर तमाशा देखना। वे चैनलों में बैठकर बड़ी बड़ी बातें करते है और भीड़ में मरते है आम लोग।
कृपया नेताओ की कठपुतली मत बनिये, अफ़वाहों से गुमराह होकर भेड़चाल मत चलिए। भीड़तंत्र का हिस्सा बनने से पहले अपने बुध्दि और विवेक का इस्तेमाल कीजिये। किसी भी चीज का विरोध या समर्थन बगैर उसे जाने समझे मत कीजिये।

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