Friday, March 20, 2020

793. भारतीयता अपनाएं कोरोना भगाएं

*भारतीयता अपनाएं, कोरोना भगाएं।*
-हमारी संस्कृति में ही रोगों से बचाव और उपचार है।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

कोरोना से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी 22 मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया तो बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कहने लगे कि मोदी का यह आइडिया पश्चिमी देशों की नकल है। शायद उन्हें पता नहीं कि ताली बजाने का आइडिया तो सदियों से वेद पुराण में है। पूजा के बाद आरती में लोग तालियां बजाते हैं उससे न केवल रक्त संचार होता है बल्कि कई बीमारियों से बचाव होता है। हमारी हथेली और तलवे में पूरे शरीर के नसों का पॉइन्ट होता है । ताली बजाने से उनमें दबाव पड़ता है जिससे पूरे शरीर का रक्त संचार सही होता है। ताली बजाने से एक ऊर्जा मिलती है। आज के सभी आइडिया हमारे प्राचीन ग्रंथो में पहले से ही है जिसे कुछ लोग ढकोसला बताते रहे आज वही अपना रहे, शाकाहार, नमस्कार, योग, व्यायाम, संयम सबकुछ पहले से है। बीमारियां तो आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की देन है। हवन की समिधा में धूप, गुग्गुल, मधु, घी, नवग्रह की लकड़ियां सहित कई तरह की सामग्री को जलाते हैं जिससे वातावरण के सारे कीटाणु और विषाणुओं का अंत होता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है। हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ हथेली में मौजद कीटाणुओं का नाश कर देती है और स्वतः सेनिटाइजर का काम करती है। आज कोरोना के भय से दिन में दस बार लोग सेनिटाइजर का उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह प्रसाद में तुलसी के पत्ते को डाला जाता है उसके पीछे का भी वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रसाद में अगर कोई जहरीला पदार्थ मिला होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा और शुद्ध होने पर प्रसाद कितना भी गर्म हो तुलसी का पत्ता हरा ही रहेगा। प्रसाद के साथ हम तुलसी को भी खाते हैं जो रोगों से बचाव करता है। आज डॉक्टर भी तुलसी के पत्ते को खाने की सलाह दे रहे हैं। इसी तरह शंख बजाने से न केवल हमारी श्वास प्रणाली सुदृढ होती है बल्कि पूरे वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त करती है। यह विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया हैं कि शंख की ध्वनि से आसपास के वातावरण से कीटाणुओं का नाश हो जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 चरणों में शरीर का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसलिए स्नान कर और हाथ-पैर धोकर जाने का विधान है ताकि आप सेनिटाइज होते रहें। नियकर्म पद्धति में शौच क्रिया के पश्चात और भोजन से पूर्व हस्त प्रक्षालन के जितने चरण बताये गये हैं आज हम वही हैंडवाश के 7 चरणों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। पहले अस्पताल या शौच से आने के बाद स्नान करके घर में प्रवेश की इजाज़त थी जिसके पीछे का तथ्य यही है कि आप संक्रमण से स्वच्छ होकर ही घर में घुसे ताकि अन्य लोग प्रभावित न हों। पहले लोग जूते-चप्पल घर के बाहर ही रखते थे ताकि कीटाणु/विषाणु  घर में प्रवेश न कर सके। हिन्दू धर्म मे शवों के दाह संस्कार का विधान है जिसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य है कि जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। आज कोरोना के मामले में भी यही प्रकिया अपनायी जा रही है। हमारी संस्कृति हाथ जोड़कर नमस्कार करने की रही है ,संक्रमण होने का खतरा नहीं होता। जबकि पश्चात्य संस्कृति में हग और किस(आलिंगन-चुंबन) प्रमुख है। आज कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया हमारी नमस्कार संस्कृति को अपना रही है। प्राचीन काल मे शाकाहार को महत्व दिया गया है उसमें बीमारियों का खतरा नहीं होता। कोरोना का संक्रमण माँस से ही हुआ है। आज इसके खौफ़ से मांसाहार छोड़ शाकाहारी बनने लगे हैं। मासिकधर्म के दैरान महिलाओं को बहुत आराम की जरूरत होती है और बहुत जल्द संक्रमित होने का खतरा रहता है इसलिए उन्हें मन्दिर या भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से रोका जाता था। आज कोरोना संक्रमित मरीजों को 14 दिनों के आइसोलेशन वार्ड में रखने की सलाह दी जा रही है जबकि यह प्रक्रिया हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। जब भी किसी को चेचक होता था तो उसे अलग कमरे में नीम की डालियों से घिरी चारपाई में सुलाया जाता था ताकि संक्रमण बढ़े नहीं और मरीज ठीक हो। हमारे यहां तो भगवान जगन्नाथ भी बीमार पड़ते हैं और उन्हें कुछ दिनों के बिल्कुल ही आइसोलेट कर आराम करने दिया जाता है। ये सारी प्रथाएं और भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है लेकिन लोग इसे ढकोसला और अंधविश्वास बता कर मज़ाक उड़ाते रहते हैं। आज कोरोना के खौफ़ में पूरी दुनियां भारतीय संस्कृति को अपनाने पर विवश है।सनातन धर्म में तो सदियों से बात बताई गई है कि शाकाहार अपनाओ, प्राणिमात्र से प्रेम रखो, वन-उपवन का संरक्षण करो, फलाहार करो, किसी प्राणी की हत्या न करो। प्रकृति से प्रेम करो। अगर वातारण शुद्ध है तो मुंह मे पट्टी बांधने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यज्ञ हवन समिधा में इतनी सामग्री जलती थी कि सारे कीटाणु/विषाणु मर जाते।शँख, घँटी और तालियों की ध्वनि से वातावरण कीटाणु मुक्त रहता था। तुलसी का प्रयोग हर प्रसाद में किया जाता है। आज वही हम खा रहे हैं। आरती में कपूर जो सेनिटाइजर का काम करता है। नित्यकर्म पद्धति में हस्त प्रक्षालन के जितने चरण वर्णित हैं आज उसे  हैंडवाश में सीखा रहे हैं। इसी तरह स्नान,ध्यान, योग ,तप, साधना, एकांतवास सबकुछ पहले से ही वर्णित है। जितने भी नियम बने उसके पीछे विज्ञान छुपा है।
इसीलिए भारतीय संस्कृति अपनाओ, कोरोना जैसे खतरों को दूर भगाओ।

© पंकज भूषण पाठक प्रियम

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