राज महफ़ूज थी किनारे में
वो डूब गए पता लगाने में।
समन्दर में घर बनाया हमने
वो रह गए रेतों को बचाने में।
छोड़ आये हम जमाना पीछे
वो रह गए दुनिया दिखाने में।
क्या कहेंगे चार लोग यहाँ पे
सब रह गए इसे सुलझाने में।
कौन सुनता किसी का यहाँ पे
सब लगे हैं अपनी सुनाने में।
दुश्मनों से नहीं है कोई खतरा
अपने ही लगे हैं अब सताने में।
न करो इश्क में रूसवा,रूठे तो
उम्र बीत जाएगी फिर मनाने में।
©पंकज प्रियम
No comments:
Post a Comment