समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
तेरे ख्वाबों में हम खोते तेरी आँखों में हम सोते आज के न हम यूँ रोते काश! के तुम मेरे होते-2
हम तुम दोनों घर बनाते चाँद सितारों से सजाते आज के न हम दो होते काश! के तुम मेरे होते।-2
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