राह बड़ी मुश्किल होती दीवानों की
आग में जलती जिंदगी परवानों की।
दोस्त ही हो जाए,अगर यूँ बेवफ़ा तो
फिर जरूरत ही क्या है दुश्मनों की।
पूछो ना हाल तुम और मेरे दिल का
बहुत आग जली है यहां हसरतों की।
चले जाओ जहाँ भी तुमको है जाना
सुनाएगी तुझे सदा मेरे धड़कनों की।
मिटा दो नाम मेरा अपनी किताबों से
कैसे मिटाओगे निशां मेरे गुलाबों की।
©पंकज प्रियम
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