Saturday, June 16, 2018

363.चाँद के फासले

उनकी ईद,चाँद के ही आसरे
हमारी चौठ भी चाँद के आसरे
एक ही चाँद,क्यूँ फिर फासले?

ईद देता है सन्देश भाईचारे का
भला क्या कसूर था बेचारे का
यही वक्त था ,रक्त बहाने का!

सभी मना रहे ईद की खुशियां
कहीं निकल रही है सिसकियां
कैसे हलक से उतरेगी सेवइयां।

किस मुँह से कहूँ मुबारक ईद
तोड़ दिया उसने सारी उम्मीद
क्या बनेगा यहां कोई हामिद!

काश की चाँद को समझ पाते
चाँदनी सी रौशनी बिखेर पाते
चाँद को आँगन में उतार जाते।

©पंकज प्रियम

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