Thursday, June 7, 2018

357.जिन्दगानी

किस बात का करें घमंड
जब दुनियां ही बेगानी है।
छोड़कर जाना दुनियां को
बस यही सच्ची कहानी है।
ये दौलत और ये शोहरत
सब यहीं छोड़कर जाना है।
नहीं कुछ भी जाएगा साथ
देह भी यहीं छोड़ जाना है।
क्यूँ करें किसी से शिकवा
क्यूँ लड़ना और झगड़ना है
उधार की तो है ये जिंदगी
क्या पाना,क्या बिछड़ना है।
जीवन पल में बिखर जाए
दुनियाँ की रीत ये पुरानी है
कब कहाँ कैसे गुजर जाएं
चार दिनों की जिंदगानी है।
©पंकज प्रियम
7.6.2018

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