Tuesday, September 1, 2020

872. अरमान कैसा?

अभिमान कैसा?

ये दौलत ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
ये जीवन उधारी तो' अभिमान कैसा?

जहाँ धड़कने भी उधारी किसी की
किसी को वहाँ दे अभयदान कैसा?

पलों से जियादा कहाँ ज़िन्दगी है?
तो पलपल पले ख़ूब अरमान कैसा?

पढ़ा और लिक्खा नहीं हर्फ़ से बढ़,
तो कहना तेरा खुद ही विद्वान कैसा?

उसी के' इशारों पे' चलती है' साँसे,
बँधी डोर पुतली का गुमान कैसा?

कहाँ कुछ लिये आये जाना कहाँ है
फ़क़त चार दिन का है' एहसान कैसा?

बिखर जाएगी देह माटी में मिलकर ,
परिंदों सा उड़ना है आसमान कैसा?

धरा ही रहेगा........ कमाया धरा में,
सफ़र ज़िन्दगी फिर ये सामान कैसा?

प्रियम जो कमाया, उसी का दिया सब
उसी का उसी को किया दान कैसा?
©पंकज प्रियम

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