अभिमान कैसा?
ये नाम ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
उधार की जिंदगी का अभिमान कैसा?
हरेक साँस पे तो धड़कनों का पहरा है,
यहाँ किसी को देना जीवनदान कैसा?
पलों से ज्यादा कहाँ ज़िन्दगी का वजूद,
हरेक उस पल में पलता अरमान कैसा?
हर्फ़ से ज़्यादा पढ़ा और लिखा क्या है?
फिर तेरा खुद को कहना विद्वान कैसा?
उसी के इशारों पे चलती है सबकी साँसे,
नाचती कठपुतलियों का स्वाभिमान कैसा?
कहाँ कुछ लेकर आये, क्या जाना है लेकर
फ़क़त चार दिनों में करता एहसान कैसा?
माटी में मिल जाएगा माटी का यह तन,
परिदों सा यूँ तेरा उड़ना आसमान कैसा?
यहीं रह जाएगा कमाया जो कुछ भी तूने
सफ़र है ज़िन्दगी तो सजाना सामान कैसा?
ईश्वर का ही सबकुछ, मिला जो भी है प्रियम,
उसी का दिया उसी को करना दान कैसा?
©पंकज प्रियम
1 सितम्बर 2019
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