ग़ज़ल
इस क़दर आदमी आजमाया गया,
बेवज़ह भी उसे तो रुलाया गया।
दर्द से कब यहाँ फ़िक्र किसको हुई
ज़ख्म देकर तमाशा दिखाया गया।
दोष ईश्वर को देते मगर सच यही,
आदमी आदमी से सताया गया।
मुँह अगर खोलकर बोल दे जो कोई,
आँख उसको दिखाकर दबाया गया।
जो दिखाया कभी आइना तो प्रियम,
वो समझ रास्ते से हटाया गया।
कवि पंकज प्रियम
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