Wednesday, September 23, 2020

881.कवि का कर्म

मंचों पर चुटकुले पढ़ना, कवि का कर्म नहीं होता।
कुर्सी का अभिनन्दन करना, कवि का धर्म नहीं होता।
साहित्य क्षितिज का दिनकर बनना, काम नहीं इतना आसां
जनमानस की पीड़ा कह दे, कवि का मर्म वही होता।।
©पंकज प्रियम

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