समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
यहाँ जिंदा मरा है सब, सजा बाज़ार लाशों का,
विचारों पे लगा पहरा, दिखे अख़बार लाशों का।
यकीं किसपे करे कोई, भरोसा हो भला किसपर-
धरा का देवता करता, यहाँ व्यापार लाशों का।।
©पंकज प्रियम
बहुत ही सटीक लिखा है आपने।
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1 comment:
बहुत ही सटीक लिखा है आपने।
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