Sunday, September 7, 2025

1010. गीतायन

गीतायन परिकल्पना 
पंकज प्रियम 
वरदा वीणा वादिनी, तुझे नवाऊँ शीश।
रूके नहीं यह लेखनी, दे मुझको आशीष।।

मातु पिता आशीष से, पूरण हो मन-काम।
धर्म ध्वजा लहरा सकें, गीतायन के नाम।।

लीलाधर की लीला न्यारी। महाभारत कथा है प्यारी।
गीतायन है ग्रन्थ मनोरम। हर प्रसङ्ग लगता सर्वोत्तम।।
इसकी महिमा बड़ी निराली। भर दे सबकी झोली  खाली।।
गीता का यह ज्ञान सिखाये। सही गलत की राह दिखाये।।

धर्मस्थापन के लिए, रचा महा संग्राम।
कौरव पाण्डव पात्र थे, युद्ध लड़े घनश्याम।। 

धर्म-कर्म की अनुपम गाथा। भावक नवा रहे निज माथा।।
मन में यह विश्वास जगाए। अज्ञ-तिमिर को दूर भगाए।।
गूँजी गीता वाणी न्यारी । जिसे बखाने कृष्ण मुरारी॥
संकट में जब अर्जुन डोला । ज्ञान-कोश तब प्रभु ने खोला॥

कथा कही मुनि व्यास ने, जिसको लिखे गणेश।
है भारत के रूप में,    अद्भुत ग्रन्थ विशेष।।

धर्म हेतु रणभूमि सजाई । नीति-रीति सबकुछ समझाई ॥
कर्मयोग के पाठ पढ़ाये । भक्ति-ज्ञान के मार्ग बढाये.  
सुख-दुख सब की गति बतलाई. वृथासक्ति सब दूर भगाई। 
पावन गीता ग्रन्थ पुनीता । ज्ञान-मोक्ष की मार्ग प्रणीता।


गाथ रची संग्राम पर, हुआ अनोखा काम।
भारत के हर भाग से, जन-मन जुड़े तमाम।।

सरल सहज हिन्दी की भाषा। गढ़ी गयी नूतन परिभाषा।।
शब्द सुमन सुंदर अति पावन। भाव शिल्प लगते मनभावन।
सत्य शांति स्नेहिल रस धारा। है गीतायन गान हमारा।
कृष्ण कंठ वर्णित उपदेशा। मोक्ष मार्ग दर्शित सन्देशा।।


सफल मनोरथ हो रहा, मिला स्वजन-सहयोग।
"गीतायन" के रूप में, यह है नवल प्रयोग।

गीतायन यह दीप अनोखा। जिसने जनमन का विष सोखा ॥
सत्य धर्म सेवा हितकारी। जीवन यज्ञ सफल  सुखकारी।।
जीवन कर्म सुगम फलदाता. सकल मनोरथ भाग्यविधाता.
गीतायन यह ज्ञान अनूपा. मंगल गान अमित स्वर-रूपा. 

गीतायन के ज्ञान से, हुआ सुजाग्रत बोध। 
धर्म, योग, उपदेश से, मिटे सकल अवरोध॥

गीतायन गीत
युग-युग का सन्देश सुनाती, सम्मुख रख मानव जीवन।
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन?

कुरुक्षेत्र का कण-कण साक्षी, युद्ध लड़े नर नारायण।
किसने कब-कब किसको मारा, हारा किससे किसका मन।
जीत गया जो रण में सबसे, फिर वह किससे हार गया।
कौन पराजित हुआ यहाँ पर, कौन किसे ललकार गया।

किसने क्या बलिदान दिया, कब किसने किया परायण.  
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन?

सब कहते सत्ता का झगड़ा, भाई –भाई को मारा.
नारी का अपमान हुआ तो, मिट गया वंश कुरु सारा. 
पांचाली का हँसना वह भी,  मूढ़मगज दुर्योधन पर।
पुत्रमोह में अंधे राजा के शापित वृद्धापन पर।।

कौन यहाँ दोषी बन बैठा, किसको था मौन समर्थन
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन।

धर्म अधर्म के मध्य लडाई, सत्य-असत्य की खाई. 
लोभ, मोह, दम्भ के मोहरे,  चौसर की सब चतुराई।
झूठ, कपट के, छल के आगे, हारी सब सच्चाई।
सभामध्य में चीरहरण पर, किसको थी लज्जा आई? 

भीष्म, द्रोण, कर्ण के मौन ने किया कलंकित आदर्शन?
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन? 

गीतायन महाकाव्य अनुपम, जिसमें गीता-सार लिखा।
रणभूमि रण मध्य खड़े कृष्ण, विराट रूप संसार दिखा।
युग परिवर्तन की चौखट पर, कृष्ण रूप अवतार हुआ।
धर्म स्थापन हित अधर्म के पुतलों का संहार हुआ।।

अद्भुत कथा, महाभारत के सर्जक थे ऋषि द्वैपायन।
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन।।

Tuesday, April 22, 2025

1009.आतंक का मज़हब

वो आये नाम पूछा
धर्म देखा और मार दी गोली
न ब्राह्मण देखा, न क्षत्रिय
न वैश्य और न ही शूद्र,
न अगड़ा, न पिछड़ा
न ऊंच न नीच
म सवर्ण न दलित
न जैन, न भीम 
न एसटी, एससी, ओबीसी
न यादव, न सिंह, न मिश्रा, न वर्मा
न जात देखी, न पात देखी
उनकी नजरों में तो बस हिन्दू थे
जिनके कपार पर ठोक दी गोली
छोड़ा तो सिर्फ उन्हें ही छोड़ा
जिन्होंने उनके कहने पर कलमा पढ़ा। 
आप लड़ते रहो जात-पात पर
उलझे रहो जातिगत जनगणना पर।
किसी को ब्राह्मणों पर मूतना है
किसी को भूरा बाल साफ करना है
किसी को एमवाई का साधन है गणित
कोई अगड़ा, पिछड़ा और दलित।
@पंकज प्रियम

Saturday, April 5, 2025

1008. जयचन्द



जयचन्द

तब भी कुछ जयचंद थे, अब भी हैं जयचंद।
जयचंदों ने ही किया, भारत का पट बंद।।

आक्रान्ता औकात क्या? कर पाते क्या वार?
साथ अगर देते नहीं,         देश छुपे गद्दार।।

सोने की चिड़िया कभी, आर्यावर्त अखण्ड।
खण्ड-खण्ड जिसने किया, देना होगा दण्ड।।

देश छुपे गद्दार को, अब लो सब पहचान।
जो हुआ नहीं देश का, क्या तेरा है जान।।

भारत माता कह रही,  कर लो अब संकल्प।
राष्ट्र बचा लो साथ मिल,  वक्त बचा है अल्प।।

पंकज प्रियम
05.04.2025

Friday, March 14, 2025

1007. रंग से परहेज़

रंगों से परहेज किसे है,         बोलो मेरे यार।
रंग बिना क्या धरती-अम्बर, रंग बिना संसार?
जोगीरा सा रा रा रा

रंगों से ही सजा हुआ है, यहाँ सकल संसार।
रंग बिना बेरंग है कितने, जीवन के दिन चार।
जोगीरा सा रा रा रा

झगड़ा-झंझट काहे करते, काहे करते रार?
मिलकर सारे रंग लगाओ, रंगों का त्यौहार।
जोगीरा सा रा रा रा

पङ्कज प्रियम

Wednesday, March 12, 2025

१००६.. रंग मुहब्बत

मिटाकर रंग नफ़रत का, मुहब्बत रंग तुम भर लो।

भुलाकर दुश्मनी दिल में, नई उमंग तुम भर लो।
नहीं शिकवे गिले कोई, न कोई द्वेष हो मन में-
मनाकर प्रेम की होली, सभी को संग तुम कर लो।।
©पंकज प्रियम

Friday, February 7, 2025

1005.ऋतुराज बसन्त

ऋतुराज बसन्त
धरती ने शृंगार किया हो चले सुगन्धित वन उपवन। 
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

फूल खिले हैं बागों में और वसुधा ओढ़ी पीली चुनर।
कुहू-कुहू कोयलिया गाये,   गुंजारित कर रहे भ्रमर।
बौराये मकरंद की ख़ातिर, फिरते कलियों के आंगन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

दुल्हन आज बनी है अवनी, अम्बर आज बना है कन्त।
प्रकृति ने बारात सजायी, आया जो ऋतुराज बसन्त।
फूलों ने जो खुशबू बिखेरी, महक उठा है आज चमन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

नवकोंपल से शोभित तरुवर, हर्षित धरती और गगन।
होली सा खुमार चढ़ा है,         नाचते गाते सारे मगन
सुर्ख दहकते अंगारों से...    फूल पलाश भरे कानन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

पंकज प्रियम कवि पंकज प्रियम

Tuesday, November 19, 2024

1004. पुरुष भी रोते हैं

कौन कहता है कि, मर्द रोते नहीं।
रोते तो हैं मगर आँसू बहाते नहीं।

पुरुषों का हृदय कोई पत्थर का नहीं होता
वहाँ भी धड़कती है एक जान किसी के लिये
एक पुरूष केवल पुरूष ही नहीं होता
होता है एक माँ का दुलारा, बाप का प्यारा
एक पत्नी का संसार और बच्चों का सहारा।
घर परिवार से बाहर दुनिया और समाज
माथे पर जिम्मेवारियों का कँटीला ताज
पुरूष भी रोता और सिसकता है
आंसुओं के बाढ़ को रोक लेता है
उसकी भी आँखे होती है नम
पी जाता है अंदर ही सारे गम।
बूढ़े माँ-बाप कहीं कमजोर न पड़ जाएं
बीवी-बच्चे कहीं उदास न हो जाएं।
इसलिए आँसुओ को दबाना पड़ता है।
चेहरे पर लाकर झूठी -सी मुस्कान
दिल में हर गम को छुपाना पड़ता है। 
पुरूष तब रोता है जब वह तन्हा होता है
जीवन के भँवर में जब खुद को खोता है।
अकेले ही सारी दुनिया का बोझ ढोता है।
हाँ पुरूष भी अंदर-अंदर खूब रोता है। 

पुरुष दिवस की बधाई।
कवि पंकज प्रियम

Saturday, November 2, 2024

1003. खोना पड़ता है

रातों की नींद, दिन का सुकून खोना पड़ता है।
घर-परिवार, सुख-चैन से दूर होना पड़ता है।
फ़क़त पत्थर फैंकने से फल नहीं मिल जाता-
दिनरात पसीना बहाकर बीज बोना पड़ता है।।

ये मत सोच कि धरा ने तुमको दिया क्या है?
जरा सोच, धरा के लिए तुमने  किया क्या है?
ये जननी तो सबको समान अवसर देती है-
ये तो अपना कर्म है कि उससे लिया क्या है?

माँ और मिट्टी कहाँ बच्चों से हिसाब लेती है?
जो कुछ भी है सबकुछ तो बेहिसाब देती है।
ये बच्चों की नादानी है जो फ़र्क मान बैठते-
माँ का आँचल को आनंदमयी रमणरेती है।

फ़टी चादर को क्या तलवार से सिया जाता है?
अपनों से क्या रिश्तों का हिसाब लिया जाता है?
मिलना न मिलना सब तय है उसके बहीखाते में-
फल तो वही मिलता है जो कर्म किया जाता है।।

प्रियमवाणी
©पङ्कज प्रियम

Wednesday, October 30, 2024

1002.आओ ज्योति पर्व मनायें

आओ ज्योति पर्व

मन से ईर्ष्या द्वेष मिटाकर, 
नफरत का हर भेष मिटाकर।
प्रेम भाव सन्देश जगाकर, 
               सत्य सनातन दीप जलाएं
                आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अंधकार पर प्रकाश की,
अज्ञानता पर ज्ञान आस की।
असत्य पर सत्य की,
              पुनः एक जीत दुहरायें,
              आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भूखा -प्यासा हो अगर,
बेबस लाचार ललचाई नज़र। 
उम्मीद जगे तुमसे इस कदर, 
           कि दर्द में मरहम लेप लगायें,
               आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अन्याय से ये समाज, 
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह
        इस दर्द की हम दवा बन जायें,
              आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भय आतंक -वितृष्णा बुझाकर
बुझती नजरो में आस जगाकर।
जाति-मज़हब का भेद मिटाकर
                अमन-चैन के फूल खिलायें,
                   आओ ज्योति पर्व मनाएं।

चहुँओर प्रीत की रीत जगाकर,
निर्मल निश्छल गीत बनाकर।
निर्झर का संगीत सजाकर,
               मन से मन का मीत बनायें
               आओ ज्योति पर्व मनाएं।
               आओ ज्योति पर्व मनाएं।
©पंकज प्रियम
#Diwali #दीपावली #bharat #indian #sanatandharma #sanatani साहित्योदय

Thursday, October 24, 2024

1001. गैया माता (आरती)

ॐ जय गैया माता, मैया जय गैया माता।
दूध दही घृत माखन, घर-घर सुख दाता। ॐ जय-

तुम हो गौंवत्री पयस्विनी, तुम हो सुधा दाता।
 ओ मैया तुम हो सुधा दाता।
गौरी, धेनु, सुरभी, भद्रा हिंदमाता। ॐ जय गैया माता।

तुम हो कान्हा प्यारी, कपिला गिरिजा गीता। 
ओ मैया कपिला गिरिजा गीता।
तुम्हरे चरण जिस घर में, धन बैभव आता। ॐ जय गैया माता। 

गौतमी गोमती श्यामा, वैष्णवी मङ्गला गौमाता। ओ मैया वैष्णवी मङ्गला गौमाता।
नंदिनी भारती कृष्णा, रजता, मनसा तृप्ता। ॐ जय गैया माता

गोपेश्वरी कल्याणी, संध्या, ज्वाला, ललिता। 
ओ मैया सन्ध्या ज्वाला ललिता। 
पंचगव्य तुमसे ही, पूर्णा, भक्ति, त्वरिता। ॐ जय गैया माता। 

गोबर ऊर्जादायक, गोमूत्र अमरदाता। ओ मैया गोमूत्र अमरदाता। 
रोग प्रतिरोध क्षमता, अमृता कहलाता। ॐ जय गैया माता। 

गौसेवा फलदायी, सुख सन्तति करता। ओ मैया सुख सन्तति करता।
जिस घर में तुम रहती, क्लेश नहीं टिकता। ॐ जय गैया माता।

निशदिन आरती जो कोई, प्रेम सहित गाता। ओ मैया प्रेम सहित गाता।
कहत प्रियम सुन साधो, संकट मिट जाता। ॐ जय गैया माता। 

ॐ जय गैया माता, मैया जय गैया माता। 
दूध दही घृत माखन, घर-घर सुखदाता। ॐ जय गैया माता।
©®पंकज प्रियम

Sunday, October 20, 2024

1000. शिवायन

*दोहा*
जन रामायण पूर्ण कर, कृष्णायन का नाम।
मातुपिता आशीष से, किया शिवायन काम।।

भोलेशंकर की कथा, आदि अनादि अशेष। 
प्रियम समर्पित साधना, ग्रंथ शिवायन भेष।। 2

*चौपाई*
शिवशक्ति की महिमा न्यारी। ग्रंथ शिवायन गाथा प्यारी।।1
अद्भुत अनुपम रचना प्यारी। सत्य सनातन महिमा न्यारी।। 2
कण-कण भारत काव्य बना है। सबके मन का भाव सना है।।3
शिव का वर्णन सरल कहाँ है।
कण भर कोशिश हुई यहाँ है।।4
सत्य स्वरूप शिवायन सुंदर।  स्थापित हो यह घर के अंदर।।5
सबने पूरी की है निष्ठा।वेद ग्रन्थ सी मिले प्रतिष्ठा।। 6
हर दिन पूजन करे जो इसका। पूर्ण मनोरथ हो सब उसका।। 7 
ग्रन्थ शिवायन शिव को अर्पण। 
करे प्रियम निज भाव समर्पण।।8

*दोहा* 
शिव शक्ति के प्रेम का, अद्भुत हुआ बखान। 
सत्य शिवायन साधना, बने सुग्रन्थ महान।। 3

*चौपाई*
आदिशक्ति की प्रीत पुनीता। जनम-जनम में रही विनीता।। 9
बमभोले की है वो प्यारी। मातु भवानी महिमा न्यारी।। 10
शिवशक्ति का रूप मनोरम। पुरूष प्रकृति का है संगम।। 11
जग कल्याण के हेतु हरदम। त्याग समर्पण करते बमबम।।12
व्याघ्रछाल नरमुण्ड की माला, कण्ठ सुशोभित करते हाला।।13
जटाजूट से गङ्गा धारा। भाल सुशोभित चंदा न्यारा ।। 14
भस्म लपेटे तन में सारे। कानन-कुण्डल बिच्छू प्यारे।।15
डम-डम डमरू नाद भयंकर, ले त्रिशूल ताण्डव कर शंकर।। 16
दानव-मानव सबके प्यारे। बमभोले हैं जगत दुलारे।।17
भेदभाव से परे हैं शंकर। अभयदान देते अभ्यंकर।। 18
सहज सरल हैं बमबम बोले। बेल-धतूरे से मन डोले।। 19
पूजा जपतप ध्यान जरूरी। मनोकामना करते पूरी ।। 20

 *दोहा*
सत्य साधना से सृजित, पूर्ण मनोरम काम।
शिव को समर्पित ग्रन्थ ये, रचा शिवायन नाम।।4

*चौपाई*
पन्द्रह सर्गो में संपादित। दो खण्डों में है ये सर्जित।। 21
प्रथम खण्ड में गाथा सुंदर। द्वितीय खण्ड में युद्ध भयंकर।। 22
डेढ़ शतक कवियों ने मिलकर। किया सृजन यह ग्रन्थ मनोहर।।23
ग्रन्थ शिवायन काव्य महातम। सकल जगत में है यह उत्तम।।24
नितदिन जो भी पाठ करे वो। कभी काल से नहीं डरे वो ।। 25
काल अकाल निकट नहि आवै। मोक्ष प्राप्त कर शिव को पावे।। 26
कहे प्रियम यह ध्यान लगाकर। तृप्त हुआ मन ग्रन्थ को पाकर।। 27
शिवशक्ति की गाथा पावन। सत्य साधना ग्रंथ शिवायन।। 28

दोहा- 
भोलेशंकर की कृपा, मिला अम्ब वरदान।
ईश्वर के आशीष से, पूर्ण हुआ अवदान।।

  
पंकज प्रियम

999. शिव का मन

शिव का अंतर्मन
कैसे तुझे बताऊं गौरा, क्या कहता है मेरा मन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।

काल का देव बनाया हमको, महाकाल सब कहते।
जग संहारक नाम दिया और मुझसे सब हैं डरते।
जग कल्याण के हेतु हरदम, हमने खुशियां त्यागी।
भोग विलास से दूर रहे हम, ध्यान योग वैरागी।
चिताभस्म में धूनी रमाये, व्याघ्रचर्म है मेरा वसन।
सबने देखा मृत्यु ताण्डव, देख न पाया सन्तुलन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।

सागर के मंथन में अमृत, सब देवों ने पान किया।
देवता दानव सबने अपने, हिस्से धन का खान किया।
कालकूट का विष फैला तो, सबने मेरे नाम किया।
मेरे भक्तों ने ही मुझको, आज यहां बदनाम किया। 
गांजा फूँके भांग को पीते, मेरे नाम पे मद सेवन।
सबने हलाहल पीते देखा, देख न पाया मन क्रंदन।

कैसे तुझे बताऊं गौरा, क्या कहता है मेरा मन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।
पंकज प्रियम

Monday, September 16, 2024

998. मंज़िल

मंजिले मिलती उन्हीं को, जो समय के संग हो। 
ज़िन्दगी का हो सफ़र या, मौत-जीवन जंग हो।

हार में क्या? जीत में क्या?
प्रेम में क्या? प्रीत में क्या?

997. ज़िन्दगी बहार लगती है

ज़िन्दगी
ज़िन्दगी यार बड़ी, खुशगवार लगती है,
इश्क़ का फूल खिलाती, बहार लगती है।
पास आकर के कभी मौत मुस्कराये तो-
ज़िन्दगी धूप में ठंडी,  बयार लगती है।।
पंकज प्रियम 
16.09.2024

Saturday, August 24, 2024

996.महाकाल

नाथ कहो शिवनाथ कहो तुम, बमबम भोलेशंकर प्यारे।

गङ्गजटाधर चन्द्र सुशोभित, सर्प सजाये तन में सारे।।

हाथ त्रिशूल सुसज्जित डमरू, नन्दी बैल चढ़े त्रिपुरारे।

भक्तन को मझधार उबारत, दुष्टन को खुद नाथ सँहारे।।

पकड़ के हाथ वो सबका, भँवर से पार भी करते,
हमारे नाथ बम भोले,.... सभी से प्यार भी करते।
ज़हर पीकर हलाहल वो, सदाशिव बन गए शंकर-
करे कल्याण वे जग का, वही संहार भी करते।।

हे महाकाल, हे शिवशम्भु
हे भोलेनाथ, हे विश्वगुरू।
जगतनियन्ता, प्रतिपालक
हे बैद्यनाथ,  कैलाशपति।
चिता भस्म हैं धूनी रमाये
सकल चराचर तुम्हीं समाए।

हे गंगाधर, हे शिवशंकर
हे जटाधर, हे कृपानिधि।
नीललोहित,  वामदेव,
हे त्रिपुरांतक, प्रजापति।
विश्व मनोरम तुम्हीं बसाए
सकल.....।

हे महादेव, हे व्योमकेश
हे मृत्युंजय, हे भूतपति।
चारुविक्रम, सूक्ष्मतनु
हे प्रथमाधिप, उमापति।
जगत मनोरथ, मन हरषाए।
सकल....।

हे पिनाकी, हे कपाली
हे कामारी, हे मृगपाणी
भुजंगभूषण, सुरसूदन
हे शिवाप्रिय, भूतपति।
दानव मानव शीश झुकाए।
सकल....।
©पंकज प्रियम

Thursday, July 11, 2024

995.महंगाई

महंगाई

आलू को बुखार चढ़ा,
      टमाटर लाल हुआ।
            हरी मिर्च हरजाई,
                धनिया धमाल है।

दाल-रोटी नून प्याज,
    महंगा है सब आज।
       रसोई में आग लगी,
              बड़ा बुरा हाल है।
            
गिर गया पैसा पर
    चढ़ गयी महंगाई।
       आग लगी तरकारी,
           सौ के पार दाल है।

घट गई रोजगारी,
   बढ़ गयी है बेकारी
        घर-घर बदहाली,
              जनता बेहाल है। 
©पंकज प्रियम

Thursday, June 6, 2024

994.चुनाव जाल में फंसती जनता

चुनावी जाल में फँसते आम वोटर

जाति मज़हब जीते सब,
गया हिंदु बस हार। 
फ्री पैसे के लोभ में, दिया काम दुत्कार।
पंकज प्रियम
नेताओं की धूर्तबाजी और चालाकी में भोली भाली जनता फंस जाती है। निश्चित तौर पर ये धूर्तबाजी सभी अशिक्षित वर्गो पर की गई और वोट लेने के लिए 1 लाख रुपये की गारंटी कार्ड तक दे दी गयी। उन्हें यह नहीं बताया गया कि कोंग्रेस की सरकार बनने पर 1 लाख सलाना दिए जाएंगे वल्कि यह बताया गया होगा कि इंडि गठबंधन को वोट दीजिये और हर महीने आपके खाते में पैसा आने लगेगा तभी तो बंगलुरु में चुनाव के पहले खाता खुलवाने मुस्लिम महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। चुनाव खत्म होते उन्हें लगा कि अब तो उनके खाते में पैसे आ जाएंगे और इसीलिए औरतें कोंग्रेस दफ्तर में पहुँचने लगी। इन दलों ने शुरू से ही मुस्लिम, दलित और पिछते अशिक्षित वर्ग को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करने का पाप किया है। अगर ये महिलाएं शिक्षित होती तो निश्चित तौर पर उन्हें यह पता होता कि यह महज चुनावी भाषण था।
वैसे भी देश की हर महिला को 1 लाख रुपये सलाना देना व्यवहारिक नहीं है। आखिर कहाँ से कोई सरकार इतने रुपये फ्री में देगी? सरकार कोई भी चीज फ्री में नहीं देती है उसकी वसूली आम जनता से ही टैक्स के जरिये करती है। देश की बहुसंख्यक आबादी अपनी मेहनत की कमाई को टैक्स ले रूप में सरकार को देती है और सरकार उसे अपनी राजनीतिक लाभ के लिए रेबड़िओं की तरह मुफ्त में बांटने का काम करती है। अगर फ्री में ही देना है तो विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री अपनी निजी संपत्ति से दे इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार की मेहनत की कमाई को फ्री में लुटाने का अधिकार किसी सरकार को नहीं है। 

  चुनाव के वक्त पैसे और शराब बांटने का काम लगभग हर पार्टी करती है। वोट के बदले नोट के लालच में समाज के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग आसानी से फंस जाते हैं और राजनीतिक दल उन्हें अपना वोट बैंक बनाते रहे हैं। वे सही गलत का चुनाव नहीं कर पाते उन्हें समाज के कुछ ठेकेदार जैसे हांकते हैं उसी तरफ हो लेते हैं जबकि अगड़े और शिक्षित वर्गो का वोट बिखरा रहता है, एक ही घर में 4 अलग विचारधारा के लोग रहते हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के लिए पहले अल्पसंख्यक वर्ग वोटबैंक था अब धीरे-धीरे उन्होंने बहुसंख्यक आबादी को जातियो में विभाजित कर दलितों को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं। मौजूदा लोकसभा चुनाव परिणाम को ही देख लीजिए । अल्पसंख्यक, दलित, ओबीसी वर्ग में एकमुश्त एकतरफा वोट दिया क्योंकि उन्हें 1 लाख सलाना का लालच और आरक्षण खत्म करने का डर दिखाया गया। जबकि भाजपा के पारंपरिक वोटर अगड़े और शिक्षित वर्ग वोट देने भी नहीं निकले उन्हें लग रहा था कि भाजपा तो प्रचण्ड जीत की ओर बढ़ ही रही है। प्रधानमंत्री के 400 पार नारे ने भी भाजपा के वोटरों को अलसी बना दिया यही वजह रही कि मुस्लिम बहुल इलाकों में तो बम्पर वोटिंग हुई लेकिन हिन्दू बहुल इलाकों में लोग बाहर नहीं निकले। इसमे कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में अभूतपूर्व और अप्रत्याशित कार्य हुए हैं। सड़क, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास हर क्षेत्र में काम हुए हैं। मोदी सरकार में  सरकारी कामकाज की परिभाषा बदल गई। प्राइवेट सेक्टर की तरह ही सरकारी विभागों में टारगेट बेस्ड कार्य हो रहे हैं। छुट्टी और रविवार तो जैसे सरकारी कर्मचारी भूल ही गये हैं। घर आने के बाद भी देर रात तक सबको काम करना पड़ रहा है। सबको मिशन मोड में काम करना पड़ता है। यही वजह है कि मोदी सरकार से सरकारी कमर्चारी का एक बड़ा वर्ग नाराज भी है क्योंकि पहले की सरकारों में उनके लिए कोई काम ही नहीं था। हर घर जल, स्वच्छ भारत मिशन, आवास में सबको शुद्ध पेयजल, शौचालय और पक्के मकान मिल रहे हैं। कोरोना काल से प्रत्येक परिवार में हर सदस्य को 5 किलो मुफ्त अनाज दिए जा रहे हैं आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका लाभ किस वर्ग को ज्यादा मिल रहा है। हिन्दू गरीब परिवारों में मुश्किल से 3 या 4 सदस्य होते हैं तो कुल जमा 20 किलो अनाज उन्हें मिलता है जबकि एक मुस्लिम परिवार में 15-20 सदस्य होते हैं तो उन्हें हर माह 1 क्विंटल मुफ्त अनाज मिल रहा है। उसी तरह हर परिवार को शौचालय और आवास मुफ्त में मिल रहा है। इन योजनाओं से लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार से जुड़े हुए हैं। गॉंव -गाँव में बिजली, पानी और सड़क की सुविधा मिल रही है। मैं अपने ही गाँव को देखता हूँ कि 15-17 वर्ष पहले एक अदद सड़क तक नहीं थी कोई रिक्शा वाला भी जाने को तैयार नहीं होता था आज हाइवे बन गया है और 24 घण्टे गाड़ियां चलती है। 24 घण्टे बिजली मिल रही है। आज से 15 साल पहले किसी के घर मे एक मोटरसाइकिल तक नहीं थी लेकिन मोटरसाइकिल छोड़िये अधिकांश के घर में कार है।    सबके पक्के मकान बन गए हैं। हालत यह है कि घर और खेत के लिए मजदूर तक नहीं मिलते। सड़क निर्माण में जमीन अधिग्रहण से अधिकांश परिवार लखपति -करोड़पति हो गए हैं। आज मेरे गाँव की जमीन भी सोने के भाव बिक रही है। लोग पैसे लेकर घुम रहे लेकिन जमीन नहीं मिल रही है। सबको फ्री का आवास और अनाज जो मिल रहा है तो कौन काम करे? इसी तरह किसी भी गाँव शहर का उदाहरण देख सकते हैं। अयोध्या और काशी की तो दशा बदल गयी है। याद कीजिये 5 साल पहले की अयोध्या और आज की अयोध्या! जमीन आसमान का फर्क दिखता होगा। काशी, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन का विकास देखिए। अपने बाबाधाम में ही अब इंटरनेशनल एयरपोर्ट और एम्स बन गया है। रेल सुविधाओं का विस्तार हुआ है। राम मंदिर बनने के बाद सबको लगा रहा था कि भाजपा को बम्पर सीट मिलेगी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देखिए कि फ़ैजाबाद सीट ही हार गई। लोगों का  कहना है कि स्थानीय प्रत्याशी लल्लू सिंह ने कोई काम नहीं किया इसलिए उन्हें हराया। दुकानदारों की दुकानें छिनने का भी रोष था। ठीक है लल्लू सिंह ने काम नहीं किया लेकिन अयोध्या का विकास तो भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने ही किया न! आप उस काम के लिए तो वोट देते। केंद्र में मोदी की सरकार रहेगी तो सपा के सांसद कितना विकास कर देंगे? रही बात दुकान घर टूटने की तो आप बेशक मुआवजे के लिए लड़िये, अपनी मांग रखिये। विरोध में आप वोट का बहिष्कार भी कर देते तो भी बात समझ मे आती लेकिन उस दल को कमजोर करना जिसने अयोध्या की 500 वर्षो से अभिशप्त नगरी को पुनः सजाने सँवारने का काम किया। मन्दिर बनने से उसी क्षेत्र का तो सर्वांगीण विकास हुआ है। एक स्थानीय बता रहे थे कि पहले  पूरे मकान का किराया 2 से 3 हजार महीना मिलता था आज एक कमरे का किराया प्रतिदिन 2 से 3 हजार उठाते हैं। फूल-प्रसाद से लेकर घर दुकान तक का रोजगार बढा ही है। अयोध्या, काशी, मथुरा, वृंदावन जैसे शहर की पूरी अर्थव्यवस्था ही मंदिरों के भरोसे है। यूँ कहें कि भारत के अधिकांश शहर मन्दिरो के भरोसे चल रहे हैं। फिर भी उत्तरप्रदेश की जनता का विकास के बजाय महीना मुफ्त का साढ़े आठ हजार ला लालच और आरक्षण जैसे कोढ़ के डर से मोदी सरकार के विरूद्ध वोट करना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। हालांकि इसके लिए भाजपा को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है। अपने कोर कार्यकर्ता की बजाय दलबदलू को टिकट देना भी नुकसानदायक रहा है। यूपी में सीटों के बंटवारे में मुख्यमंत्री योगी को पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए थी। जो अच्छे काम कर रहे थे उनका टिकट नहीं काटना था। संघ को लेकर चलना चाहिए था ऐसे कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनपर पार्टी को मंथन रखते हुए आगामी चुनाव की तैयारी में अभी से जुटने की आवश्यकता है। बंगाल में ममता बनर्जी के लिए रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठियों का बड़ा वोटबैंक है। ममता बनर्जी उनके अंदर CAA कानून का भय बिठाने में कामयाब रही। वहाँ एक मजबूत विकल्प की जरूरत है। 
 लब्बोलुआब यही कि हर क्षेत्र में विकास हुआ है बावजूद इसके मोदी सरकार को बहुमत नहीं मिलना देश का दुर्भाग्य है। इतिहास गवाह है कि गठबंधन की सरकार कभी स्थायी और मजबूत नहीं होती। पिछले दो कार्यकाल में जिस दृढ़ता के साथ सरकार ने निर्णय लिया तीसरे टर्म फर्क साफ दिखेगा। सहयोगी दल अभी से ही मलाईदार मंत्रालय मांगने लगे हैं जाहिर है उनका एकमात्र ध्येय मलाई काटना ही है विकास से कोई लेना देना नहीं होगा। गठबंधन सरकार के सहयोगी दल अपने ही विकास में लगे रहेंगे तो जाहिर तौर पर नुकसान देश की जनता का ही होगा। 

पंकज प्रियम

Sunday, April 28, 2024

९९३. मतदान करें

 निकल आओ घरों से अब, हमें सबको जगाना है.

हमारी वोट की ताकत, सकल जग को दिखाना है. 

मिला अधिकार है हमको, नया निर्माण करने को -

सही मतदान अब कर लो, नहीं  इसको गंवाना है..

पंकज प्रियम 


Sunday, April 21, 2024

992. गठजोड़

 गठजोड़

गुंडे हो या मुजरिम, बन कर बैठे मोर।
कैसी है ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
नेता गज़ब ढाहे, नाचे ता ता थैया।
कुर्सी संभाले या संभाले अपनी नैया।
इस कुर्सी की माया, छाई है चहुँओर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
नेतवन की नैया को, लगावे ये किनारा।
बदले में खाते उनसे, सबका ही चारा।
मर्जी फिर तो इनकी, चलती है हर ओर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
जिनपर इनाम है जा, बैठे हैं संसदवा।
जनता के पैसे पर, घूमें है विदेसवा।
थाना, अफसर, कोटवा, सबपे इनका जोर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।

Friday, April 19, 2024

991.निर्वाचन का मौसम

निर्वाचन का मौसम, नेताजी करे शोर।
घर-घर जाकर वोटवा, मांगे हाथ जोर। 

वोटवा हमीं को देना, देना रे भईया।
फिर तो दिखा देंगे, ता ता थईया।
इस वोटवा के चलते, करेंगे क्या क्या और
घर-घर जाकर वोटवा, मांगे हाथ जोर। 

नेतवा करे क्या जाने, सबको इशारा।
ले लो तू रुपया-पैसा, पर कर न किनारा।
अर्जी है हमारी, हो जाना हमरी ओर।
घर-घर जाकर वोटवा, मांगे हाथ जोर।

इसबार हमको भैया, भेज दो संसदवा
हम तो मिटाइये देंगे, देश से गरीबवा।
पाकर कुर्सी हम तो, न आएं इस ओर।
घर-घर जाकर वोटवा, मांगे हाथ जोर।
पंकज प्रियम
2 फरवरी 2004
अंतर्नाद