विधा-ग़ज़ल
मेरी तुलना आख़िर क्यूँ औरों से करते हो
हर राज को जाहिर क्यूँ गैरों से करते हो।
मुझसा नहीं कोई अब तेरा हमराही होगा
मुझे हमराज बनाने से आख़िर क्यूँ डरते हो।
क्या होती है तड़प मेरे दिल से तुम पूछो
थम जाती है सांसे,जो तुम औरों पे मरते हो।
मेरे दिल की आवाज़ कभी तू सुन लेना
थम जाती धड़कने तुम जो आहें भरते हो।
दिल को सुकूँ देता है हर अहसास तुम्हारा
प्रियम की गलियों से क्यूँ नहीं गुजरते हो।
©पंकज प्रियम
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