इश्क़ का रंग
दरिया में समंदर कभी लहरा है क्या
दिल पे भी लगा कभी पहरा है क्या।
दरिया में समंदर कभी लहरा है क्या
दिल पे भी लगा कभी पहरा है क्या।
वक्त! अब और इम्तेहान न लो मेरा
इश्क़ में भला तू कभी ठहरा है क्या।
इश्क़ में भला तू कभी ठहरा है क्या।
इश्क़ में अक्सर लहू अश्कों से बहा
इस हद से आगे कोई गुजरा है क्या।
इस हद से आगे कोई गुजरा है क्या।
लहू का हर कतरा यही अब कह रहा,
ये इश्क़ का रंग मुझसे गहरा है क्या?
ये इश्क़ का रंग मुझसे गहरा है क्या?
सुर्ख तो इतना है इश्क़ का रंग प्रियम
जो चढ़ गया फिर कभी उतरा है क्या?
जो चढ़ गया फिर कभी उतरा है क्या?
©पंकज प्रियम
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