कर मुहब्बत,लिख कहानी
नहीं मिलेगी फिर जवानी।
फ़क़त जवानी चार दिन
जी भर जी ले जिन्दगानी।
लिख फ़साना रख निशानी
नहीं होगी फिर रुत सुहानी।
चार दिनों का है ये जीवन
हरदिन कर कुछ तूफ़ानी।
ना बनना तुम अभिमानी
हो जाएगी खत्म जवानी
उधार का है यह तन-मन
रखना आंखों में तू पानी।
बेशक़ होना खूब रूमानी
रिश्ता न केवल जिस्मानी
बन जाएगा ये राख बदन
करना इश्क़ तुम रूहानी।
©पंकज प्रियम
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