Wednesday, January 2, 2019

498.मुर्गे का खून

मुर्गे का खून

हर तरफ उल्लास है
दिन बड़ा ये खास है।
हर तरफ ही धमाल है
आ गया नया साल है।

लेकिन कोई उदास है
आँखे हो गई निराश है।
पूछ रहा अम्मा से वो
माँ आज क्यूँ उदास है?
हर कोई खुशहाल है
आया जो नया साल है।

यही तो कारण है बेटा
जब जब मानव हुआ
यहां पर खुशहाल है
समझ लो कि हमारा
तब हुआ बुराहाल है।

जश्न का हो कोई मौका
या पाकिस्तान पे चौका
या आया नया साल है
मुर्गे का तब खून बहा
बकरा हुआ हलाल है।

खुशियां इनकी सारी
जश्न भी सारा इनका
पार्टी और त्यौहारों से
बढ़ती इनकी शान है।
क्यूँ न आये मेरे आँसू
जाती बेटे की जान है।

मुर्गे का जब खून बहे
बकरे खूब हलाल हुए।
दारू पी-पी करके जब
सबके सब बेहाल हुए।
देखो जब यह हाल है
समझ लो नया साल है।

31 की जब नाईट हो
पीकर के सब टाईट हो।
मुर्ग-मसल्लम की पार्टी
घर-घर की ये परिपाटी।
सब चलता टेढ़ी चाल है
समझ लो नया साल है।

©पंकज प्रियम

No comments: