◆ग़ज़ल
◆काफ़िया - अर
◆रदीफ़-बाकी है
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कदम को रोक ना लेना कुछ सफर बाकी है
मंजिल पाने को अभी कुछ डगर बाकी है।
◆काफ़िया - अर
◆रदीफ़-बाकी है
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कदम को रोक ना लेना कुछ सफर बाकी है
मंजिल पाने को अभी कुछ डगर बाकी है।
चलना ही जीवन है कदम तू साथ ही रखना
अंधेरी रात के आगे भी एक सहर बाकी है।
अंधेरी रात के आगे भी एक सहर बाकी है।
गाँव-गली सब छूट गए अपने भी रूठ गए
मंजिलों के लिए अभी और शहर बाकी है।
मंजिलों के लिए अभी और शहर बाकी है।
बढ़ चुके इस कदर,ना रही खुद की कदर
दिल की रुसवाई में होना बेकदर बाकी है।
दिल की रुसवाई में होना बेकदर बाकी है।
नफ़रतों की आग से दूर रहता है प्रियम
दिल में मुहब्बत का कुछ असर बाकी है।
©पंकज प्रियम
दिल में मुहब्बत का कुछ असर बाकी है।
©पंकज प्रियम
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