वायरस
कुछ ऐसा वायरस... आ जाये,
हर दिल में मुहब्बत छा जाये।
कुछ ऐसा वायरस...आ जाये,
बस प्यार मुहब्बत भा जाये।।
नफऱत का कहीं भी नाम न हो,
हाँ प्यार का लब बदनाम न हो।
हरदिल में मुहब्बत.. छा जाये,
कुछ ऐसा वायरस....आ जाये।
क्या जीना और क्या मरना है?
इस मौत से भी क्या डरना है?
संग अपनों के रहना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये
नफऱत न किसी से द्वेष न हो,
कुछ मन में छुपा विद्वेष न हो।
खुशियों को लुटाना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।
जाति-धरम का भेद न हो,
न्याय-व्यवस्था छेद न हो।
भय, भूख-गरीबी खा जाये।
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।
©पंकज प्रियम
27.3.2020
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