समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
नवरात करूँ जगराता, माता तुम सबपे उपकार करो, महिषासुर घाती माता, कोरोना संहार करो। घर में कैद हुआ है मानव, बाहर विचरे ऐसा दानव- रक्तबीज बन बैठा राक्षस, कोरोना पे वार करो।।
Post a Comment
No comments:
Post a Comment