Monday, March 23, 2020

795. कोरोना के नाम

प्यारी कोरोना,
स्वागत नहीं है तुम्हारा।

तुमसे जंग लड़ रहे लोगो की सेवा में जुटे कर्मियों को धन्यवाद देने के लिए आज मैंने ताली तो बजायी लेकिन साथे मन किया कि जो ज्यादे बुर्दहिमान और चम्पादक टाइप के लोग है उनका कान भी बजा दें। मरदूद के ताली बजाने में भी उनको राजनीति दिख रही थी। कह रहे थे जो ताली बजा रहे वो सभी मूर्ख हैं। मने पूरा देश मूरख और एक वही लोग बुर्दहिमान हैं। मतलब हद है विरोध की सियासत। ताली और थाली बजाकर लोग धन्यवाद दे रहे थे उन लोगों का जो विषम परिस्थितियों में भी लोगों की सेवा में जुटे हैं। लेकिन ऐसे लोग तो अति बुर्दहिमान और सो कॉल्ड इंटेलेक्चुअल होते हैं जिन्हें सेना को गाली देने में मजा आता है। देश के टुकड़े करने में मजा आता है लेकिन अपने देश के असली हीरो के सम्मान में ताली बजाना मूर्खता लगती है। ओ कोरोना! मेरी जान, तू जा ऐसे बुर्दहिमान चम्पादकों से गले लग ,उसे इतना प्यार दे कि बस तुझमें ही समा जाय। क्योंकि उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करना गंवारपन लगता है। हग करना, किस करना और हाथ मिलाना उनके फैशन में है इसलिए बिंदास जा तू उनके पास। हमलोग तो निपट गंवार और मूरख ठहरे! तुम चीन से आई हो लेटेस्ट आईफोन हो तो ऐसे लोगों के हाथ मे सुशोभित होगी तुम रानी, हमलोग तो फिचरफोन वाले ठेठ मूरख हैं जो अपनो से प्यार करता है। सेवा और मदद करनेवालों का सम्मान करता है। बिल्कुल बिंदास होकर घर मे जो मिला थाली, चम्मच, बेलन, ड्रम, घँटी, शंख लेकर अपने-अपने छतों में बिना कोर्ट टाई लगाए, गमछा गंजी पहने खूब बजाया। कुछ नहीं मिला तो ताली ही बजाया , हमरे दोस्त मनोरंजन की लुगाई तो ले फिरर-फिरर सिटिये बजाकर धन्यवाद दे दी। क्या बच्चे और बूढ़े क्या औरत और क्या मरद सब के सब बिंदास होकर प्रधानमंत्री के आह्वान पर एकजुट होकर कोरोना से जंग का शंखनाद कर दिये। ई देख के केतना बुर्दहिमान और चम्पादकों के करेजा पर साँप लौटे लगा।  फिरी का जियो नेट मिलिए गया है तो फेसबुकवा कर आंय-बांय बकने लगा- भारत मदारियों का देश है। अरे हाँ कुछ लोग तो देश को #देस लिखले था और ऊपर से देस को स्त्रीलिंग बनायले थे और भाषण क्लिंटन वाला? हम भी चुन-चुन कर सबका कान बजाय दिये। तो कुछ लोग को देश का जितना लोग ताली बजाया उसका कपार में उसको मूरख लिखल दिख गया, अपन कपार पीटा तो बुर्दहिमान दिखा। मने हद है यार कोरोनो, तुम भी न क्या जरूरत थी इतना दूर से आने की, चाइना माल पर तो वइसने भरोसा नैय रहता है तुम काहे फटकने आ गयी। वहीं भेज देते एसन आदमीयन को जिसे तुमसे प्यार है। हम मूर्खो के पास मत रहो, न तो हग करेंगे, न हाथ मिलाएंगे और किस करेंगे। दूर से हो हाथ जोड़ ले परनाम कर लेंगे। इसलिए बेशक चली जाओ वापस,यहाँ आज ताली बजाये हैं न, ज्यादे जिद करेगी न तो तुमको भी बजा देंगे। अरे हमलोग तो दीवाली के बिहान फाटल सुप और झाड़ू से पीट-पीट कर दलिद्दर को भगा देते हैं तो तू कौन खेत की मूली है। मतलब हद है यार, मान न मान मैं तेरी मेहमान।

©पंकज भूषण पाठक प्रियम

2 comments:

Kamini Sinha said...

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -3-2020 ) को " तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

अनीता सैनी said...

सारगर्भित एवं विचारणीय लेख आदरणीय
सादर