ग़ज़ल
212 212 212 212
पास आकर जरा गुनगुनाओ अभी
हाल क्या है दिलों का सुनाओ अभी।
खौफ़ पसरा अभी है सरे राह में,
कैद घर मे रहो, मुस्कुराओ अभी।
चंद घड़ियां बची है अभी पास में,
आस जीवन जरा सा जगाओ अभी।
साथ मिलकर चलो जंग ये जीत लें,
मौत के खौफ़ को मिल हराओ अभी।
कश्मकश ज़िन्दगी साँस धड़कन रुकी
हौसला ज़िन्दगी का बढ़ाओ अभी।
©पंकज प्रियम
31 मार्च 2020
1 comment:
ये पंक्तियाँ पढ़कर लगा जैसे किसी ने मुश्किल हालात में भी उम्मीद जगाने की कोशिश की हो। हालात चाहे जितने भारी हों लेकिन जीने की आस कभी खत्म नहीं होनी चाहिए। सच कहूँ तो ज़िंदगी का असली मज़ा तभी है जब हम साथ खड़े होकर मुश्किलों का सामना करें। मौत का खौफ़ हर किसी को होता है, लेकिन उससे ऊपर उठकर मुस्कुराना ही असली जीत है।
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