हो गयी फाँसी दुष्कर्मी को, मिला हृदय को अब है चैन।
धन्यवाद करती अब माता, थी वर्षों से जो बैचेन।
दुष्कर्मी कोई बच न पाये, नेता मंत्री या अफ़सर।
फाँसी सबको हो जाये, अफ़रोज़ नाबालिक या सेंगर।
हैवान सभी होते हैं वह जो नोचते बेटी की अस्मत,
हरपल खौफ़ बढ़ाये वो मौत ही उनकी हो किस्मत।
इंसाफ़ करे अब न्यायालय, बिन लगवाये वो चक्कर,
कोई बेटी मरे नहीं अब, इन खूनी पंजों में फँसकर।
सजा कठिन हो ऐसी कि, मौत की वो फरियाद करे,
बेटी को सब बेटी समझे, फिर कोई न अपराध करे।
आसिफा हो या निर्भया, किसी की माँ न रोये कभी,
अस्मत पे जो हाथ लगाए, दे दो फाँसी उसको अभी।
न्याय में देरी अन्याय सदा, जल्दी करो इंसाफ़ अभी
हैवान दरिन्दे दुष्कर्मी को, करो न उसको माफ़ कभी।
©पंकज प्रियम
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