Monday, September 7, 2020

875. रिश्ते क्यूँ रिसते?


जुड़ते हैं यहाँ जो प्यार से बंध के,
करते हैं भरोसा प्यार से बढ़ के।
एक पल में ऐसा होता है क्या?-
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

इश्क़ मुहब्बत चाहत नफ़रत,
सूरत शोहरत धन और दौलत।
कुछ भी यहाँ कब पास में टिकते।
रिश्ते भी दिलो के क्यूँ रिसते?

प्यार से बढ़कर क्या है दूजा,
इश्क़ इबादत प्यार है पूजा।
जब प्यार में जीते प्यार में मरते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

दिल जो परेशा होता कभी है,
टूट के दिल जब रोता कभी है।
अपनो के सहारे ही सब रहते,
रिश्तों भी दिलों के क्यूँ रिसते?

माता पिता को छोड़ के तनहा
अपनो का भरोसा तोड़ के जाना।
घर-घर में यही अब किस्से सुनते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?
©पंकज प्रियम

4 comments:

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर सृजन

मन की वीणा said...

सुंदर सृजन।