Monday, November 12, 2018

474.मुहब्बत वाली कॉफी

मुहब्बत वाली कॉफी

देर निःशब्द रात के सन्नाटे
में घड़ी की बस टिक-टिक
के बीच डायरी के पन्नों में
अपनी कविता सरिता की
मौजों में डूबता लहराता
नींद से उनींदी हुई बोझिल
अलसायी भारी पलकों से
उठाकर जब तुम्हें एक कप
चाय लाने को कहता हूँ
और न चाहते हुए भी तुम
हौले-हौले मुस्कुराते हुए
किचन में चली जाती हो।
सर्द हवाओं की ठिठुरन में
जब अपने नरम हाथों से
तुम थमाती हो मेरे हाथों में
गर्म कॉफी की एक प्याली
तो कहता है दिल हाँ यही!
है मुहब्बत वाली कॉफी।

सुबह नींद खुलने से पहले
तेरा उठना और उठकर
मेरे लिए हर रोज जगकर
तेरा सजना और सजकर
हाथों में चाय की प्याली
लेकर बिस्तर पे आकर
मुझे हौले हौले से उठाकर
मेरे हाथों में जब थमाती हो
तुम गर्म चाय की प्याली
तो कहता है दिल हाँ यही!!
है मुहब्बत वाली कॉफी

ऑफिस में दिनभर थककर
जब बेहाल सा घर लौटकर
निढाल सा होकर पड़ता हूँ
तब फूलों सा मुस्कुराकर
अपने कोमल हाथों से मेरे
सर को हौले से दबाती हो
फिर गरम चाय की प्याली
मेरे हाथों में थमाती हो
तो दिल कहता है हाँ यही
है मुहब्बत वाली कॉफी।

©पंकज प्रियम

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