Friday, November 9, 2018

472.आना चाहता हूँ

* गजल
* काफिया - आना
* रदीफ़ -- चाहता हूँ
गजल
आना चाहता हूँ
तेरी जिंदगी में इस कदर आना चाहता हूँ
जिस्म नहीं रूह में उतर जाना चाहता हूँ।
चलो माना तू खुद एक हसीन ख़्वाब है
तेरे ख़्वाब में हर पहर समाना चाहता हूँ।
चलो माना तेरा हुश्न बहुत लाज़वाब है
तेरे हुश्न को इश्क़ से सजाना चाहता हूँ।
चलो माना की तू दहकता आफ़ताब है
तेरे शोलों में खुद को जलाना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद महकता ग़ुलाब है
तेरी खुशबू से बदन महकाना चाहता हूँ।
चलो माना तू खुद ही बहकता शबाब है
तेरे हुश्न में खुद को बहकाना चाहता हूँ।
चलो माना कि ये दुनियां बड़ी खराब है
तुझे खुद पर भरोसा दिलाना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद नशा-ऐ-शराब है
होठों से तुझको जाम पिलाना चाहता हूँ।
चलो माना की तू खुद इश्क़ का खुदा है
तेरी इबादत में फूल मैं गिराना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद इक हसीं ग़ज़ल है
तेरी रदीफ़ से काफ़िया मिलाना चाहता हूँ।
चलो माना "प्रियम" का दिल शायराना है
तुझे अपनी सुंदर ग़ज़ल बनाना चाहता हूँ।
©पंकज प्रियम
09/11/2018

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