Saturday, November 3, 2018

465.सवाल

सवाल
हमने पूछा भी नहीं क्या हाल है?
देखा चेहरे पर प्रश्नों का जाल है।
सिलवटों से उलझती लगी जिंदगी
मानो हर पहर जी का जंजाल है।
हरवक्त किया वक्त से जो बन्दगी
वक्त के हाथों ही हुआ हलाल है।
बात-बात में भी दिखती गन्दगी
हर बात पे ही तो हुआ बवाल है।
सवालों के भँवर में फंसा है प्रियम
मेरे सवालों पर भी उठा सवाल है।
©पंकज प्रियम

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