Thursday, November 29, 2018

463.छोड़ दूँ क्या?

छोड़ दूँ क्या?
पता है की कल तो मुझे भी है मरना
लेकिन मैं आज जीना छोड़ दूँ क्या?
पता है खंजर का काम करती है नैना
निगाहों का जाम पीना छोड़ दूँ क्या?
पता है दिलों के ज़ख्म यूँ नहीं भरते
मुहब्बत से ज़ख्म सीना छोड़ दूँ क्या?
पता है आग लग जाती है बरसातों में
मस्त सावन का महीना छोड़ दूँ क्या?
पता है प्रियम कोई सगा नहीं अपना
बचपन का दोस्त कमीना छोड़ दूँ क्या?
©पंकज प्रियम
29.11.2018
©पंकज प्रियम

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