Thursday, November 8, 2018

470.होठों से जाम छलकता है


आँखों से पैगाम झलकता है
तेरे होठों से जाम छलकता है।

तेरा हुश्न ही लाज़वाब है ऐसा
लगे की रोज चाँद निकलता है।

एक मोड़ है जवानी का ऐसा
जहां पर यूँ कदम फिसलता है।

तू चाँद है या कहूँ आफ़ताब
तुझसे ही ये मौसम बदलता है।

तू ख़्वाब है या है हसीं ग़ुलाब
मिलने को क्यूँ दिल मचलता है?


दूर तुझसे जो रहता है प्रियम
दिल ये मुश्किल से सम्भलता है।
©पंकज प्रियम

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