धूप-दीप से तुम करो,चाहे हवन हजार।
मन में बैठा मैल जो,सब पूजन बेकार।।
धूप-दीप हर्षित करे, जैसे फूल बहार।
तनमन भी गर्वित करे,पाकर रूप निखार।।
धूप-दीप घर घर जले,आया फिर त्यौहार।
एक दीया कुम्हार का, लेकर दो उपहार।।
धूप-दीप से है सजा,जगमग ये संसार।
धूप-दीप पूजन-हवन,महकाए घरबार।।
धूप-दीप के मेल से,बह शीतल की धार।
तन को भी हर्षित करे,मन को मिले करार।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड
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