Saturday, November 3, 2018

466.धूप-दीप

धूप-दीप से तुम करो,चाहे हवन हजार।
मन में बैठा मैल जो,सब पूजन बेकार।।

धूप-दीप हर्षित करे, जैसे फूल बहार।
तनमन भी गर्वित करे,पाकर रूप निखार।।

धूप-दीप घर घर जले,आया फिर त्यौहार।
एक दीया कुम्हार का, लेकर दो उपहार।।

धूप-दीप से है सजा,जगमग ये संसार।
धूप-दीप पूजन-हवन,महकाए घरबार।।

धूप-दीप के मेल से,बह शीतल की धार।
तन को भी हर्षित करे,मन को मिले करार।।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड

1 comment:

Admin said...

भाईसाब धूप-दीप जैसे पूजा के साधनों में जो गहराई दिखाई है न, वो वाकई कमाल की बात है। सच में, बाहरी सजावट से पहले अंदर की सफाई ज़रूरी है। और “एक दीया कुम्हार का” वाला शेर बहुत प्यारा लगा, इतनी सादगी में इतनी संवेदनशीलता लाना आसान नहीं होता।