आजमाइश
इस कदर वो मुझे आजमाने लगे
याद बनकर दिलों में समाने लगे।
प्यार ना ये हुआ रेस ये हो गया
वक्त से तेज मुझको भगाने लगे।
चाँद दीदार की ख्वाहिशें जो रखी
रात में रोज मुझको जगाने लगे।
इश्क़ माना कि दरिया बड़ी आग है
गैर से प्यार कर वो जलाने लगे।
अश्क़ से भी मुझे इश्क़ जो हो गया
बेवजह रोज खुद को रुलाने लगे।
दर्द से भी मुहब्बत दिलों ने किया।
ज़ख्म को लफ़्ज़ में यूँ बहाने लगे।
प्यार में जो इबादत प्रियम ने किया
वो खुदी को खुदा अब बताने लगे।
©पंकज प्रियम
©पंकज प्रियम
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