समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
कोरोना बन आया रावण, हे राम इसे संहार करो, घर में कैद हुआ है मानव, सबका बेड़ा पार करो। कोरोना की शक्ति से, सकल चराचर मूर्च्छित है- संजीवनी बूटी ला बजरंगी, सबका तो उपचार करो। ©पंकज प्रियम रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
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