Saturday, December 1, 2018

464.नाम रहता है

मुखड़ा

हर घड़ी हर पहर,सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है.

अंतरा 1
जब से देखा है तुझे,हो गया है क्या मुझे
तेरी सूरत के सिवा,कुछ नहीं दिखता मुझे
मेरी आँखों में बस तेरा ही अक्स रहता है।
हर घड़ी...

2.
तू चँचल सी हवा, तू शीतल सी हवा
छू गयी मेरा बदन, न जाने क्या हुआ
मेरे जिस्मों में बस तेरा ही गुलाब रहता है।
हर घड़ी...

3.
पल में पलकों से मेरी,पल में तू खो गई
पल में अपनों सी मेरी,पल में तू हो गई
मेरी पलकों में बस तेरा ही ख़्वाब रहता है।
हर घड़ी....

4.
ऐ हवा ! ऐ फ़िजां! ऐ गगन!  ऐ घटा !
है मेरा मेहबूब कहाँ, उसका तू दे पता।
मेरी गजलों में बस तेरा ही पैगाम रहता है।

हर घड़ी हर पहर, सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

No comments: