क्यों डरें जो तिमिर घना
यह रात गुजर तो जाएगी।
होगा फिर एक भोर नया
किरण प्रकाश बिखराएगी।
जलने दो धूप में पैरों को
ठंडी छाँव तब तो भाएगी।
राह मिलेगी सरिता निर्मल
वह निश्चित पाँव पखारेगी।
कर ले अपना वेग पवन सा
खुद मंजिल मिल जाएगी।
शरद शीत या ग्रीष्म ऋतु
खुशबू जीवन महकाएगी।
©पंकज प्रियम
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