Sunday, February 10, 2019

522.सियासी चिता

सियासी चिता

नारी! तुम क्या वोटतन्त्र की
ज्वाला धधकती सी चिता हो।
हरबार खुद पवित्रता दर्शाती
तूम अग्निपरीक्षा देती सीता हो।
तेरी कसम खा सब झूठ बोले
कोर्ट में गवाही वाली गीता हो।
मन्दिर में सिसकती आसिफा
कभी मस्जिद में रौंदी गीता हो।
कभी निर्भया बस में लूट जाती
कभी मदरसे में मरती गीता हो।
खुद के ही अस्तित्व को लड़ती
कभी सहेली कभी तुम मीता हो।
सबके पापों की मैल तुम धोती
पावन पवित्र गंगा सी सरिता हो।
धर्म मज़हब में ही अस्मत बंटती
सियासी आग में जलती चिता हो।

©पंकज प्रियम
27.4.2018

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