ये रूप तेरा जो मस्ताना है बहुत
करता दिल को दीवाना है बहुत।
आया जो मौसम अब बसन्त का
प्यार का कुम्भ नहाना है बहुत।
मदहोश करती है तेरी ये शोखियाँ
और ये मौसम भी सुहाना है बहुत।
जरा और करीब आओ पास बैठो
तेरा दूर जाने का बहाना है बहुत।
और न दिखा तू जलवा हुस्न का
यहाँ प्रियम का ठिकाना है बहुत।
©पंकज प्रियम
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