Thursday, August 1, 2019

619.झारखंड

कणकण में प्रीत है
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हर कदम जहाँ का नृत्य है
हर शब्द जहाँ की गीत है।
हम उस प्रांत के हैं वासी,
जहाँ का कण-कण प्रीत है।

प्राकृतिक छटाओं से भरपूर
खनिज-सम्पदाओं से प्रचुर।
फिजाओं में बजता संगीत है।
जहाँ का कण...।

पहाड़-जंगल और नदी- नाला
यहां का हर कण है निराला।
औरों की खुशी में ही तो जीत है।
जहाँ का कण...।

धरती आबा बिरसा भूमि
सिद्धो-कान्हो जन्म भूमि।
जल-जंगल-जमीन की रीत है।
जहाँ का कण..।

चहुँ ओर हरियाली चादर
माटी-मटकी सोना गागर।
बुतरू लटकाए,औरत की पीठ है।
जहाँ का कण...।

कदम-कदम, मीठी बोली
आदिवासी ,जनमन भोली।
कभी सरस् सरल, कभी ढीठ है।
जहाँ का कण-कण..।

पार्श्वनाथ गगन चुम्बी
देवलोक देवघर भूमि।
प्रकृति देव् समर्पण तो नीत है
झारखंड का कणकण प्रीत है।

©✍पंकज प्रियम

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