बदनाम न करो
निगाहों से तुम यूँ क़त्लेआम न करो,
हुस्न की नुमाईश यूँ सरेआम न करो।
बहुत ऊँची है नफ़रत की दीवार मगर,
मेरी मुहब्बत को यूँ बदनाम न करो।
अभी तो पहला ही कदम है इस डगर,
जाना है दूर तलक यूँ आराम न करो।
ख़ता हुई तो सजा मौत की दे दो मगर,
किसी का जीना तो यूँ हराम न करो।
नहीं साथ देना तो साफ़ कह दो मगर
रुसवाई का प्रियम यूँ इंतजाम न करो।
©पंकज प्रियम
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