समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
करो मत बात कश्मीर की, अभी तो और भी लेंगे, पिओके तो हमारा है, उसे सिरमौर ही लेंगे। अगर औकात भूला तो, समझ लो हश्र क्या होगा- कराँची संग पेशावर, झपट लाहौर भी लेंगे।। ©पंकज प्रियम 30 अगस्त 2019
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