समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
बधाई मानसी
रचा इतिहास फिर देखो, यहाँ इक और बेटी ने, कदम लाचार हैं तो क्या, रखा सिरमौर बेटी ने। जोशी मानसी बेटी, कहाँ हिम्मत कभी हारी- अगर चाहो सभी मुमकिन, दिखाया दौर बेटी ने।। ©पंकज प्रियम 28 अगस्त 2019
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