मुक्तक
विधाता छंद
अभी बैठे सभी आँगन, .........सुहाना दृश्य मनभावन,
सभी जब व्यस्त कार्यों में, सुवासित क्यूँ न हो तनमन।
सकल परिवार ही देखो, .........समर्पित हो गया जैसे-
समय के साथ का संगम, व्यस्थित गाँव का जीवन।।
नहीं है दौड़ शहरों सी,........ नहीं है खौफ़ का मंजर,
चमकते अक्स खुशियों से, नहीं दिल में चुभा ख़ंजर।।
सभी करते यहाँ मिहनत, .....परिश्रम ही बड़ी दौलत-
पसीने से उगे सोना, ...............जमीं चाहे रहे बंजर।।
©पंकज प्रियम
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