समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मौत के इस मंजर में, आओ एक उम्मीद जगायें, मन का तिमिर मिटाने को आओ एक दीप जलायें। बहुत घनेरा तमस है फैला, कोरोना के साये में- जग से इसका खौफ़ मिटाने, आओ एक दीप जलायें।।
©पंकज प्रियम
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